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"अम्मा / राम सेंगर" के अवतरणों में अंतर
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− | जीने की | + | जीने की ज़िद-सी है आई |
अम्मा लेश नहीं डरती है। | अम्मा लेश नहीं डरती है। | ||
− | है | + | |
− | कहते-कहते फट-सी पड़ती | + | है तहज़ीब बदल की कैसी |
+ | कहते-कहते फट-सी पड़ती । | ||
घटनाओं की लिए थरथरी | घटनाओं की लिए थरथरी | ||
− | पीछे लौटे | + | पीछे लौटे — आगे बढ़ती । |
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दिनचर्या पर चीलें उड़तीं | दिनचर्या पर चीलें उड़तीं | ||
झोंक स्वयं को कठिन समय में | झोंक स्वयं को कठिन समय में | ||
− | लड़ने का वह दम भरती | + | लड़ने का वह दम भरती है । |
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चौलँग तमक अराजकता की | चौलँग तमक अराजकता की | ||
− | कुछ भी करो, | + | कुछ भी करो, ख़ौफ़ काहे का । |
इस दर्शन ने रह-रह तोड़ा | इस दर्शन ने रह-रह तोड़ा | ||
− | नर-नारी का अकलुष एका | + | नर-नारी का अकलुष एका । |
− | कामुक | + | |
− | चीरेगा अब यही | + | कामुक - क्रूर - नज़र की कुण्ठा |
− | हाथ होंस का सिर धरती | + | चीरेगा अब यही त्रिया-धन |
− | आहत हैं, स्वर-मूल्य-भावना | + | हाथ होंस का सिर धरती है । |
− | तो भी | + | |
+ | आहत हैं, स्वर - मूल्य - भावना | ||
+ | तो भी हममें समझ जगाए । | ||
मुर्दा तंत्र, समाज निकम्मा | मुर्दा तंत्र, समाज निकम्मा | ||
− | असुरक्षा पर होंठ चबाए | + | असुरक्षा पर होंठ चबाए । |
− | है | + | |
+ | है महफूज़ न औरत कोई | ||
शहतूती विधान को लेकर | शहतूती विधान को लेकर | ||
− | प्रबल विरोध खड़ा करती | + | प्रबल विरोध खड़ा करती है । |
− | अम्मा लेश नहीं डरती | + | |
+ | अम्मा लेश नहीं डरती है । | ||
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13:48, 31 जुलाई 2023 के समय का अवतरण
जीने की ज़िद-सी है आई
अम्मा लेश नहीं डरती है।
है तहज़ीब बदल की कैसी
कहते-कहते फट-सी पड़ती ।
घटनाओं की लिए थरथरी
पीछे लौटे — आगे बढ़ती ।
दिनचर्या पर चीलें उड़तीं
झोंक स्वयं को कठिन समय में
लड़ने का वह दम भरती है ।
चौलँग तमक अराजकता की
कुछ भी करो, ख़ौफ़ काहे का ।
इस दर्शन ने रह-रह तोड़ा
नर-नारी का अकलुष एका ।
कामुक - क्रूर - नज़र की कुण्ठा
चीरेगा अब यही त्रिया-धन
हाथ होंस का सिर धरती है ।
आहत हैं, स्वर - मूल्य - भावना
तो भी हममें समझ जगाए ।
मुर्दा तंत्र, समाज निकम्मा
असुरक्षा पर होंठ चबाए ।
है महफूज़ न औरत कोई
शहतूती विधान को लेकर
प्रबल विरोध खड़ा करती है ।
अम्मा लेश नहीं डरती है ।