भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हिम की मार / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 41: पंक्ति 41:
 
उजली भोर
 
उजली भोर
 
बिखर गई रुई
 
बिखर गई रुई
चारों ही और। (काम्बोज )
+
चारों ही और।  
 
71
 
71
 
तू मेरा हीरा
 
तू मेरा हीरा

11:57, 8 अगस्त 2023 के समय का अवतरण

181
आँधी उमड़ी
गरीब का छप्पर
दूर ले उड़ी ।
63
तेरा मिलना
सूखे पतझर में
फूल खिलना।
64
कंटक -पथ
साथ नहीं सारथी
चलना ही है।
65
सदा वन्दन
तुमसे है ज्योतित
मेरा जीवन!
66
हिम की मार
कोंपल है गुलाबी
झेल प्रहार।
67
ये हरी दूब
शीत को ओढ़कर
खुश है खूब।
68
धूप से डरा
हिम को भी छूटा है
आज पसीना
69
प्राण मिलते
तुम हो संजीवनी
शब्द- ऋचा से।
70
उजली भोर
बिखर गई रुई
चारों ही और।
71
तू मेरा हीरा
शब्दब्रह्माणि मेरी
संजीवनी तू!!