भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छाए बादल / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' }} Category:...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:19, 16 अगस्त 2023 का अवतरण
तरह- तरह के पहन मुखौटे
दुबले -पतले छोटे- मोटे।
झूम-झूमकर हाथी जैसे
आसमान में छाए बादल।
तपता सूरज छुपता फिरता
अन्धड़ तूफानों से डरता,
धरती में जागी हरियाली
पत्तों में भर आई हलचल।
बिजली चमकी पानी बरसा
मस्त मोर का भी मन हरसा,
ताल तलैया भी इतराए
जब पाहुन बन आए बादल।
मेंढकजी गायक बन बैठे
इसीलिए है मन में ऐंठे,
लगा फुलाँचे हिसी जैसी
सबके मन को भाए बादल।
-0-14-5-81 ,अमर उजाला 6-9-81