भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँ अब भी जोहती है / राकेश कुमार पटेल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश कुमार पटेल |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
ऐसा नहीं है कि माँ को कोई दुःख है  
+
ऐसा नहीं है कि माँ को कोई दुख है  
 
लेकिन जब घर जाकर वापस लौटता हूँ  
 
लेकिन जब घर जाकर वापस लौटता हूँ  
 
माँ रोती है
 
माँ रोती है
 
माँ तब भी रोई थी  
 
माँ तब भी रोई थी  
 
अपने नीम के पेड़ के नीचे खड़े होकर  
 
अपने नीम के पेड़ के नीचे खड़े होकर  
अपने घुंघट में आंसुओ को छुपाकर
+
अपने घूँघट में आँसुओं को छुपाकर
 
उस दूर कोने तक जहाँ से मुड़ने के बाद  
 
उस दूर कोने तक जहाँ से मुड़ने के बाद  
 
माँ नहीं दिखती थी  
 
माँ नहीं दिखती थी  
हममें हिम्मत नहीं थी कि मुड़के देख सकें माँ को  
+
 
 +
हम में हिम्मत नहीं थी कि मुड़के देख सकें माँ को  
 
माँ हर बार रोती थी  
 
माँ हर बार रोती थी  
 
गठरियों में बाँधते हुए चावल, आटा और दाल
 
गठरियों में बाँधते हुए चावल, आटा और दाल
 +
 
शहर पहुँचते ही  
 
शहर पहुँचते ही  
दीवार में टंगे कैलेंडर की तारीखों में  
+
दीवार पर टँगे कैलेण्डर की तारीख़ों में  
 
खिंच जाता था एक गोला  
 
खिंच जाता था एक गोला  
 
अगली बार कब जाना है  
 
अगली बार कब जाना है  
 
माँ से मिलने  
 
माँ से मिलने  
यह जानते हुए भी कि माँ फिर रोएगी  
+
यह जानते हुए भी कि माँ फिर रोएगी
माँ एक-एक कर हमको भेजती रही शहर
+
 +
माँ एक-एक कर हमको भेजती रहती है शहर
 
और रोती रहती है हर बार
 
और रोती रहती है हर बार
 
हमको विदा करके ।  
 
हमको विदा करके ।  
 
</poem>
 
</poem>

03:19, 23 अगस्त 2023 के समय का अवतरण

ऐसा नहीं है कि माँ को कोई दुख है
लेकिन जब घर जाकर वापस लौटता हूँ
माँ रोती है
माँ तब भी रोई थी
अपने नीम के पेड़ के नीचे खड़े होकर
अपने घूँघट में आँसुओं को छुपाकर
उस दूर कोने तक जहाँ से मुड़ने के बाद
माँ नहीं दिखती थी

हम में हिम्मत नहीं थी कि मुड़के देख सकें माँ को
माँ हर बार रोती थी
गठरियों में बाँधते हुए चावल, आटा और दाल

शहर पहुँचते ही
दीवार पर टँगे कैलेण्डर की तारीख़ों में
खिंच जाता था एक गोला
अगली बार कब जाना है
माँ से मिलने
यह जानते हुए भी कि माँ फिर रोएगी
 
माँ एक-एक कर हमको भेजती रहती है शहर
और रोती रहती है हर बार
हमको विदा करके ।