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मौसम देने लगा सभी को
सर्दी का पैगाम ।
लगी सिकुड़ने धीरे-धीरे,
सुबह, दोपहरी, शाम ।
हलके हुए धूप के तेवर,
लहर शीत की दौड़ी ।
हारा हुआ जुआरी जैसे
फेंके अपनी कौड़ी ।
सूरज भी अपने अश्वों की
कसने लगा लगाम ।
सिमटी बैठी हैं चौपालें,
चुप साधे चौबारे ।
दूर-दूर झीलों पर फैले,
बजरे खड़े किनार ।
जल में सीपी, शंख रेत में,
सब करते आराम ।
सभी तरफ़ पसरा सन्नाटा,
बिछी धुन्ध की चाद ।
आमंत्रण पाकर अलाव का
जुड़ने लगे बिरादर ।
लगे खोलने गाँठे मन की
कर के दुआ सलाम ।