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"मेरा ख़याल है जादू कोई शरर में था / ज्ञान प्रकाश विवेक" के अवतरणों में अंतर

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19:20, 16 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण

मेरा ख़्याल है जादू कोई शरर में था
वो बुझ गया था मगर शहर की ख़बर में था

मैं देखता रहा जाद़्ए की रात में उसको
पुरानी आग का इक राख़दान घर में था

उठा के जेब में रखता था चप्पलें अपनी
बस एक ऐब यही मेरे हमसफ़र में था

सड़क पे गोली चली लोग हो गये ज़ख़्मी
ख़ुदा का शुक्र मैं उस वक़्त अपने घर में था

मैं उसका साथ भी देता तो किस तरह देता
वो शख़्स ज़िन्दगी के आख़िरी सफ़र में था