भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}
[[Category:कविता]]
<poeMpoem>
रातरानी कहो या कहो चाँदनी
शीश से पाँव तक गीत ही गीत हूँ. बांसुरी बाँसुरी की तरह ही तुम पुकारो मुझे एक पागल ह्रदय की विकल प्रीत हूँ. वन्दना के स्वरों से सजा लो मुझे मैं पिघलती हुई टूटती सांस हूँ. युगों युगों से बसी है किसी नेह सी मैं तुम्हारे नयन की वही प्यास हूँ.
तुम किसी तौर पर ही निभा लो मुझे
तो लगेगा तुम्हें जीत ही जीत हूँ.  जो सुवासित करे रोम से प्राण तकपर्वतों में पली चन्दनी गन्ध हूँ ।जिसकी अनुगूँज है आज हर कण्ठ मेंगीत-गोविन्द का मैं वही छन्द हूँ । नेह के भाव में राग-अनुराग मेंसात सुर में बँधा एक संगीत हूँ ।
एक आकुल प्रतीक्षा किसी फूल की
हाथ पकड़े पवन को बुलाती रही रह । शाख शोख सूरज किरन चम्पई रंग से एड़ियों पर महावर लगाती रही
प्राण जिसको सहेजे हुए आजतक
लोक व्यवहार की अनकही रीत हूँ. वन्दना के स्वरों से सजा लो मुझे मैं पिघलती हुई टूटती सांस हूँ ।युग-युगों से बसी है किसी नेह सी मैं तुम्हारे नयन की वही प्यास हूँ । खो दिया था जिसे तुमने मझधार मेंतुमसे बिछुड़ी हुई मैं वही मीत हूँ ।
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,345
edits