"हर ज़ोर-जुल्म की टक्कर में / शैलेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
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हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में, हड़ताल हमारा नारा है ! | हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में, हड़ताल हमारा नारा है ! | ||
− | तुमने माँगे | + | तुमने माँगे ठुकराईं हैं, तुमने तोड़ा है हर वादा |
− | छीनी हमसे सस्ती चीज़ें, तुम | + | छीनी हमसे सस्ती चीज़ें, तुम छँटनी पर हो आमादा |
तो अपनी भी तैयारी है, तो हमने भी ललकारा है | तो अपनी भी तैयारी है, तो हमने भी ललकारा है | ||
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है ! | हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है ! | ||
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हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है ! | हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है ! | ||
− | क्या धमकी देते हो साहब, | + | क्या धमकी देते हो साहब, दमदाँटी में क्या रक्खा है |
वह वार तुम्हारे अग्रज अँग्रज़ों ने भी तो चक्खा है | वह वार तुम्हारे अग्रज अँग्रज़ों ने भी तो चक्खा है | ||
दहला था सारा साम्राज्य जो तुमको इतना प्यारा है | दहला था सारा साम्राज्य जो तुमको इतना प्यारा है | ||
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समझौता ? कैसा समझौता ? हमला तो तुमने बोला है | समझौता ? कैसा समझौता ? हमला तो तुमने बोला है | ||
− | + | महँगी ने हमें निगलने को दानव जैसा मुँह खोला है | |
हम मौत के जबड़े तोड़ेंगे, एका हथियार हमारा है | हम मौत के जबड़े तोड़ेंगे, एका हथियार हमारा है | ||
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है ! | हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है ! | ||
− | अब | + | अब सँभले समझौता-परस्त घुटना-टेकू ढुलमुल-यकीन |
हम सब समझौतेबाज़ों को अब अलग करेंगे बीन-बीन | हम सब समझौतेबाज़ों को अब अलग करेंगे बीन-बीन | ||
जो रोकेगा वह जाएगा, यह वह तूफ़ानी धारा है | जो रोकेगा वह जाएगा, यह वह तूफ़ानी धारा है |
11:09, 10 सितम्बर 2023 के समय का अवतरण
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में, हड़ताल हमारा नारा है !
तुमने माँगे ठुकराईं हैं, तुमने तोड़ा है हर वादा
छीनी हमसे सस्ती चीज़ें, तुम छँटनी पर हो आमादा
तो अपनी भी तैयारी है, तो हमने भी ललकारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !
मत करो बहाने संकट है, मुद्रा-प्रसार इंफ्लेशन है
इन बनियों चोर-लुटेरों को क्या सरकारी कन्सेशन है
बगलें मत झाँको, दो जवाब क्या यही स्वराज्य तुम्हारा है ?
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !
मत समझो हमको याद नहीं हैं जून छियालिस की रातें
जब काले-गोरे बनियों में चलती थीं सौदों की बातें
रह गई ग़ुलामी बरकरार हम समझे अब छुटकारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है !
क्या धमकी देते हो साहब, दमदाँटी में क्या रक्खा है
वह वार तुम्हारे अग्रज अँग्रज़ों ने भी तो चक्खा है
दहला था सारा साम्राज्य जो तुमको इतना प्यारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !
समझौता ? कैसा समझौता ? हमला तो तुमने बोला है
महँगी ने हमें निगलने को दानव जैसा मुँह खोला है
हम मौत के जबड़े तोड़ेंगे, एका हथियार हमारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है !
अब सँभले समझौता-परस्त घुटना-टेकू ढुलमुल-यकीन
हम सब समझौतेबाज़ों को अब अलग करेंगे बीन-बीन
जो रोकेगा वह जाएगा, यह वह तूफ़ानी धारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !
(1949 में रचित )