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"कितने अनपढ़ भी हैं देखे कबीर होते हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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जो , ज़माने के लिए इक नज़ीर होते हैं। | जो , ज़माने के लिए इक नज़ीर होते हैं। | ||
− | + | गरचे घायल नहीं हुए तो आप क्या जानें | |
हृदय को बेधने वाले भी तीर होते हें। | हृदय को बेधने वाले भी तीर होते हें। | ||
− | + | इसको ही दोस्तो जम्हूरियत कहा जाता | |
− | चोर -उचक्के भी देश के वज़ीर होते हैं । | + | चोर - उचक्के भी देश के वज़ीर होते हैं । |
− | + | जिसको भी देखिये वो ऑख मॅूद लेता है | |
− | + | जाने क्यों हम ही इतने अधीर होते हैं। | |
लीक से हट के चलोगे तो लोग बोलेंगे | लीक से हट के चलोगे तो लोग बोलेंगे | ||
लोग सदियों से पीटते लकीर होते है। | लोग सदियों से पीटते लकीर होते है। | ||
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19:32, 12 सितम्बर 2023 के समय का अवतरण
कितने अनपढ़ भी हैं देखे कबीर होते हैं
ग़रीब लोग भी दिल के अमीर होते हैं।
ऐसे बच्चे भी हैं एकलव्य सरीखे यारो
जो , ज़माने के लिए इक नज़ीर होते हैं।
गरचे घायल नहीं हुए तो आप क्या जानें
हृदय को बेधने वाले भी तीर होते हें।
इसको ही दोस्तो जम्हूरियत कहा जाता
चोर - उचक्के भी देश के वज़ीर होते हैं ।
जिसको भी देखिये वो ऑख मॅूद लेता है
जाने क्यों हम ही इतने अधीर होते हैं।
लीक से हट के चलोगे तो लोग बोलेंगे
लोग सदियों से पीटते लकीर होते है।