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"बदल दो जीवन / उत्पल बैनर्जी / मंदाक्रान्ता सेन" के अवतरणों में अंतर
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16:30, 18 सितम्बर 2023 के समय का अवतरण
इस ओर आर० एस० एस०,
जमात या हूजी उस ओर
मुक्ति खोजूँ कहाँ, कहाँ, कहाँ, किस ठौर?
हिंसक अन्धकार युग, मानवता आज है आहत
मानव – तुम्हारे मान और बोध के शरणागत
होना है आज हमें,
लौटा दो मानवताबोध
लौटा दो प्रेम,
लौटा दो दीप्त प्रतिरोध।
ध्वंस की कैसी लीला !
कट्टरता के शिकार हैं हम
मरते हैं भाई-बहन हमारे,
मरते माता-पिता हरदम
बदला नहीं है लेना,
बदल दो जीवन का भाग
लाश नहीं,
पलाश से भर उठे प्रेम का बाग।
मूल बांगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी