भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ये दिन भी जाएगा गुज़र / प्रदीप शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:30, 2 अक्टूबर 2023 के समय का अवतरण
ये दिन भी जायेंगे गुज़र
आयेंगी खुशियां लहराकर
भर देंगी जीवन, धीरज धर।
ये दिन भी जायेंगे गुज़र।
कहती है हमें शबनम
कब रात रही हरदम
ऐ दिल न मचल
तू ज़रा सम्भल
धड़कन न बढ़ा
कुछ देर तो थम
अभी होती ही है उजली सहर।
ये दिन भी जायेंगे गुज़र।
कहता है नदी का जल
मेरी राह नहीं है सरल
मैं गगन से गिरा
पर्वतों से घिरा
बहता ही रहा हूं
मैं हरदम
अब आयेगा नीला सागर।
ये दिन भी जायेंगे गुज़र।