"हिंदी में बोलूँ / ताराप्रकाश जोशी" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | जो सोचूँ हिन्दी में सोचूँ | |
− | जो सोचूँ | + | जब बोलूँ हिन्दी में बोलूँ |
− | जब बोलूँ | + | |
− | जन्म मिला | + | जन्म मिला हिन्दी के घर में, |
− | + | हिन्दी दृश्य-अदृश्य दिखाए । | |
जैसे माँ अपने बच्चे को, | जैसे माँ अपने बच्चे को, | ||
अग-जग की पहचान कराए। | अग-जग की पहचान कराए। | ||
ओझल-ओझल भीतर का सच, | ओझल-ओझल भीतर का सच, | ||
− | जब खोलूँ | + | जब खोलूँ हिन्दी में खोलूँ ।। |
− | निपट मूढ़ हूँ पर | + | निपट मूढ़ हूँ पर हिन्दी ने, |
− | मुझसे नए गीत | + | मुझसे नए गीत रचवाए । |
जैसे स्वयं शारदा माता, | जैसे स्वयं शारदा माता, | ||
− | गूँगे से गायन | + | गूँगे से गायन करवाए । |
आत्मा के आँसू का अमृत, | आत्मा के आँसू का अमृत, | ||
− | जब घोलूँ | + | जब घोलूँ हिन्दी में घोलूँ ।। |
शब्दों की दुनिया में मैंने, | शब्दों की दुनिया में मैंने, | ||
− | + | हिन्दी के बल अलख जगाए । | |
जैसे दीपशिखा के बिरवे | जैसे दीपशिखा के बिरवे | ||
− | कोई | + | कोई ठण्डी रात बिताए । |
− | जो कुछ हूँ | + | जो कुछ हूँ हिन्दी से हूँ मैं, |
− | जो हो लूँ | + | जो हो लूँ हिन्दी से हो लूँ ।। |
− | + | हिन्दी सहज क्रान्ति की भाषा, | |
− | यह विप्लव की अकथ | + | यह विप्लव की अकथ कहानी । |
मैकाले पर भारतेंदु की | मैकाले पर भारतेंदु की | ||
− | अमर विजय की अमिट | + | अमर विजय की अमिट निशानी । |
शेष गुलामी के दाग़ों को, | शेष गुलामी के दाग़ों को, | ||
− | फिर धो लूँ | + | फिर धो लूँ हिन्दी से धो लूँ ।। |
− | + | हिन्दी के घर फिर-फिर जन्मूँ | |
जन्मों का क्रम चलता जाए, | जन्मों का क्रम चलता जाए, | ||
− | + | हिन्दी का इतना ऋण मुझ पर | |
साँसों-साँसों चुकता जाए | साँसों-साँसों चुकता जाए | ||
− | जब जागूँ | + | जब जागूँ हिन्दी में जागूँ |
− | जब सो लूँ | + | जब सो लूँ हिन्दी में सो लूँ ।। |
+ | </poem> |
15:30, 6 अक्टूबर 2023 का अवतरण
जो सोचूँ हिन्दी में सोचूँ
जब बोलूँ हिन्दी में बोलूँ
जन्म मिला हिन्दी के घर में,
हिन्दी दृश्य-अदृश्य दिखाए ।
जैसे माँ अपने बच्चे को,
अग-जग की पहचान कराए।
ओझल-ओझल भीतर का सच,
जब खोलूँ हिन्दी में खोलूँ ।।
निपट मूढ़ हूँ पर हिन्दी ने,
मुझसे नए गीत रचवाए ।
जैसे स्वयं शारदा माता,
गूँगे से गायन करवाए ।
आत्मा के आँसू का अमृत,
जब घोलूँ हिन्दी में घोलूँ ।।
शब्दों की दुनिया में मैंने,
हिन्दी के बल अलख जगाए ।
जैसे दीपशिखा के बिरवे
कोई ठण्डी रात बिताए ।
जो कुछ हूँ हिन्दी से हूँ मैं,
जो हो लूँ हिन्दी से हो लूँ ।।
हिन्दी सहज क्रान्ति की भाषा,
यह विप्लव की अकथ कहानी ।
मैकाले पर भारतेंदु की
अमर विजय की अमिट निशानी ।
शेष गुलामी के दाग़ों को,
फिर धो लूँ हिन्दी से धो लूँ ।।
हिन्दी के घर फिर-फिर जन्मूँ
जन्मों का क्रम चलता जाए,
हिन्दी का इतना ऋण मुझ पर
साँसों-साँसों चुकता जाए
जब जागूँ हिन्दी में जागूँ
जब सो लूँ हिन्दी में सो लूँ ।।