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Kavita Kosh से
कमरे में भरा है
सिगरेट का धुँआधुआँ
और बातों का शोर
खिड़की खोल, अरी लड़की!
मेरे दिल की ओर ।
ओ लड़की !
खुली रहने दे खिड़की
बस , छोड़ दे ऎसे ही अबदेखने दे मुझे यह गूंगा गूँगा नीला आसमान
बतियाने दे हरे पेड़ों से
ताकने दे नीरव सन्नाटे भरी शाम ।