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"क्यों मानते नहीं? / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर
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अंबर का दिल तड़पता जब गिरते अथाह आंसू, <br> | अंबर का दिल तड़पता जब गिरते अथाह आंसू, <br> | ||
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सागर का गम उबलता जब आतीं सुनामी लहरें, <br> | सागर का गम उबलता जब आतीं सुनामी लहरें, <br> | ||
ले लेता लाखों जानें , क्या तुम जानते नहीं? <br> | ले लेता लाखों जानें , क्या तुम जानते नहीं? <br> | ||
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तूफ़ानी ये हवाएं कहतीं तड़प-तड़प के, <br> | तूफ़ानी ये हवाएं कहतीं तड़प-तड़प के, <br> | ||
करतीं हैं नष्ट कितना? क्या तुम जानते नहीं? <br> | करतीं हैं नष्ट कितना? क्या तुम जानते नहीं? <br> | ||
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धरती भी दुख अपना कहती हिला के तुमको, <br> | धरती भी दुख अपना कहती हिला के तुमको, <br> | ||
करती तबाह कितना? क्या तुम जानते नहीं? <br> | करती तबाह कितना? क्या तुम जानते नहीं? <br> | ||
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बादल भी रूठ जाते जब,इक बूंद को तरसते हम, <br> | बादल भी रूठ जाते जब,इक बूंद को तरसते हम, <br> | ||
मचती है त्राहि-त्राहि क्या तुम जानते नहीं? <br> | मचती है त्राहि-त्राहि क्या तुम जानते नहीं? <br> | ||
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मौसम का असर है इन पर भी,हंसते कभी ये झरते तरु, <br> | मौसम का असर है इन पर भी,हंसते कभी ये झरते तरु, <br> | ||
जमता कभी पिघलता हिम , क्या जानते नहीं? <br> | जमता कभी पिघलता हिम , क्या जानते नहीं? <br> | ||
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कहते हो जड़ जिन्हें हो तुम,बेहतर कहीं हैं हमसे, <br> | कहते हो जड़ जिन्हें हो तुम,बेहतर कहीं हैं हमसे, <br> | ||
सहते हैं ज़ुल्म कितना ये?क्या तुम जानते नहीं? <br> | सहते हैं ज़ुल्म कितना ये?क्या तुम जानते नहीं? <br> | ||
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं? <br> <br> | क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं? <br> <br> |
19:24, 18 नवम्बर 2008 का अवतरण
महसूस ये भी करते हैं,क्या जानते नहीं?
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं?
अंबर का दिल तड़पता जब गिरते अथाह आंसू,
ले जाता है बहाकर सब, क्या जानते नहीं?
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं?
सागर का गम उबलता जब आतीं सुनामी लहरें,
ले लेता लाखों जानें , क्या तुम जानते नहीं?
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं?
तूफ़ानी ये हवाएं कहतीं तड़प-तड़प के,
करतीं हैं नष्ट कितना? क्या तुम जानते नहीं?
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं?
धरती भी दुख अपना कहती हिला के तुमको,
करती तबाह कितना? क्या तुम जानते नहीं?
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं?
बादल भी रूठ जाते जब,इक बूंद को तरसते हम,
मचती है त्राहि-त्राहि क्या तुम जानते नहीं?
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं?
मौसम का असर है इन पर भी,हंसते कभी ये झरते तरु,
जमता कभी पिघलता हिम , क्या जानते नहीं?
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं?
कहते हो जड़ जिन्हें हो तुम,बेहतर कहीं हैं हमसे,
सहते हैं ज़ुल्म कितना ये?क्या तुम जानते नहीं?
क्यों छेड़ते हो इनको क्यों मानते नहीं?