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23:42, 27 नवम्बर 2023 के समय का अवतरण
वे सूँघने लगते हैं तुम्हारी सांसें
ऐसा तो नहीं तुमने कहा हो : मैं प्यार करता हूँ ।
वे सूँघने लगते हैं तुम्हारा हृदय –
(कितना विचित्र समय है, मेरे प्रिय)
और वे चाबुक लगाते हैं प्रेम को
हर नाके पर ।
हमें छिपा देना चाहिए प्रेम
पीछे के कमरे में ।
इस टेढ़ी मेढ़ी अन्धी सड़क पर
वे कुरेदते हैं अपनी चिताएँ
हमारी कविताओं और गीतों से।
सोचने का ख़तरा मत उठाओ,
क्योंकि यह विचित्र समय है,
मेरे प्रिय।
वह व्यक्ति जो पीट रहा है द्वार
रात्रि के सबसे ख़राब क्षणों में
आया है दीपक को मारने हेतु ।
हमें छिपा देना चाहिए प्रकाश
पीछे के कमरे में ।
बधिक हैं राहों में
अपने काटने के ठीहों
और रक्तरंजित चापड़ों के साथ
(कितना विचित्र समय है, मेरे प्रिय)
वे खुरच लेते हैं मुस्कराहटें चेहरों से
और काटकर अलग कर देते हैं गीत मुखों से ।
हमें छिपा देना चाहिए आनन्द
पीछे के कमरे में ।
बुलबुलें भून दी गई
लिली और चमेली की लपटों में…
(कितना विचित्र समय है, मेरी प्रिय)
और शैतान विजय की मदिरा से मत्त
भोज करता है उस मेज़ पर
जो सजाई गई थी हमारे जागरण हेतु ।
हमें छिपा देना चाहिए ईश्वर को
पीछे के कमरे में ।
शोलेह वोलपे के अँग्रेज़ी अनुवाद से हिन्दी में अनुवाद : श्रीविलास सिंह