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"हरसिंगार झरे / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर

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10:03, 30 नवम्बर 2023 के समय का अवतरण

सारी रात
महक बिखराकर
हरसिंगार झरे।

सहमी दूब
बाँस गुमसुम है
कोंपल डरी-डरी
बूढ़े बरगद की
आँखों में
खामोशी पसरी
बैठा दिए गए
जाने क्यों
गंधों पर पहरे
हरसिंगार झरे।

वीरानापन
और बढ़ गया
जंगल देह हुई
हरिणी की
चंचल-चितवन में
भय की छुईमुई
टोने की ज़द से
अब आखिर
बाहर कौन करे
हरसिंगार झरे।

सघन गंध
फैलाने वाला
व्याकुल है महुआ
त्रिपिटक बाँच रहा
सदियों से
पीपल मौन हुआ
चीवर पाने की
आशा में
कितने युग ठहरे
हरसिंगार झरे।

-डॅा. जगदीश व्योम