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"रात की मुट्ठी / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर
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वक्त का आखेटक | वक्त का आखेटक | ||
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घूम रहा है | घूम रहा है | ||
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शर संधान किए | शर संधान किए | ||
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लगाए है टकटकी | लगाए है टकटकी | ||
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कि हम | कि हम | ||
− | + | करें तनिक-सा प्रमाद | |
− | करें तनिक सा प्रमाद | + | |
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और, वह | और, वह | ||
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दबोच ले हमें | दबोच ले हमें | ||
− | + | तहस-नहस कर दे | |
− | तहस नहस कर दे | + | |
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हमारे मिथ्याभिमान को | हमारे मिथ्याभिमान को | ||
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पर | पर | ||
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आएगा सतत नैराश्य ही | आएगा सतत नैराश्य ही | ||
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उसके हिस्से में | उसके हिस्से में | ||
− | + | क्योंकि | |
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हमने पहचान ली है | हमने पहचान ली है | ||
− | + | उसकी पग-ध्वनि | |
− | उसकी | + | |
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दूर हो गया है | दूर हो गया है | ||
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हमसे | हमसे | ||
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हमारा तंद्रिल व्यामोह | हमारा तंद्रिल व्यामोह | ||
− | + | हमने पढ़ लिए हैं | |
− | + | ||
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समय के पंखों पर उभरे | समय के पंखों पर उभरे | ||
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पुलकित अक्षर | पुलकित अक्षर | ||
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जिसमें लिखा है कि- | जिसमें लिखा है कि- | ||
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आओ! | आओ! | ||
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हम सब मिल कर | हम सब मिल कर | ||
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खोलें ! | खोलें ! | ||
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रात की मुठ्ठी को | रात की मुठ्ठी को | ||
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जिसमें कैद है | जिसमें कैद है | ||
+ | समूचा सूरज !! | ||
− | + | -डॅा. जगदीश व्योम | |
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10:55, 30 नवम्बर 2023 के समय का अवतरण
वक्त का आखेटक
घूम रहा है
शर संधान किए
लगाए है टकटकी
कि हम
करें तनिक-सा प्रमाद
और, वह
दबोच ले हमें
तहस-नहस कर दे
हमारे मिथ्याभिमान को
पर
आएगा सतत नैराश्य ही
उसके हिस्से में
क्योंकि
हमने पहचान ली है
उसकी पग-ध्वनि
दूर हो गया है
हमसे
हमारा तंद्रिल व्यामोह
हमने पढ़ लिए हैं
समय के पंखों पर उभरे
पुलकित अक्षर
जिसमें लिखा है कि-
आओ!
हम सब मिल कर
खोलें !
रात की मुठ्ठी को
जिसमें कैद है
समूचा सूरज !!
-डॅा. जगदीश व्योम