"नव वर्ष / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर
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आमों पर खूब बौर आए | आमों पर खूब बौर आए | ||
− | + | भँवरों की टोली मअडराए | |
− | भँवरों की टोली | + | |
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बगिया की अमराई में फिर | बगिया की अमराई में फिर | ||
− | + | कोकिल पंचम स्वर में गाए | |
− | कोकिल पंचम स्वर में | + | फिर उठें गंध के गुब्बारे |
− | + | फिर महके अपना चन्दन वन | |
− | + | नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन ! | |
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गौरैया बिना डरे आए | गौरैया बिना डरे आए | ||
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घर में घोंसला बना जाए | घर में घोंसला बना जाए | ||
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छत की मुँडेर पर बैठ काग | छत की मुँडेर पर बैठ काग | ||
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कह काँव-काँव फिर उड़ जाए | कह काँव-काँव फिर उड़ जाए | ||
− | + | मन में मिसिरी घुलती जाए | |
− | + | सबके आँगन हों सुखद सगुन | |
− | + | नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन ! | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
बच्चों से छिने नहीं बचपन | बच्चों से छिने नहीं बचपन | ||
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वृद्धों का ऊबे कभी न मन | वृद्धों का ऊबे कभी न मन | ||
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हो साथ जोश के होश सदा | हो साथ जोश के होश सदा | ||
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मर्यादित बनी रहे फैशन | मर्यादित बनी रहे फैशन | ||
− | + | जिस्मों की यूँ न नुयाइश हो | |
− | + | बदरंग हो जाए घर आँगन | |
− | + | नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन ! | |
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घाटी में फिर से फूल खिलें | घाटी में फिर से फूल खिलें | ||
− | + | फिर रुके शिकारे तैर चलें | |
− | फिर | + | |
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बह उठे प्रेम की मन्दाकिनि | बह उठे प्रेम की मन्दाकिनि | ||
+ | हिम-शिखर हिमालय से पिघलें | ||
+ | सोनी मचले, महिबाल चले | ||
+ | राँझे की हीर करे नर्तन | ||
+ | नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन ! | ||
− | + | विज्ञान, ज्ञान के छुए शिखर | |
− | + | ||
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पर चले शांति के ही पथ पर | पर चले शांति के ही पथ पर | ||
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हिन्दी भाषा के पंख लगा | हिन्दी भाषा के पंख लगा | ||
+ | कम्प्यूटर जी पहुँचें घर-घर | ||
+ | वह देश रहे खुशहाल `व्योम' | ||
+ | धरती पर जहाँ प्रवासी जन | ||
+ | नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन! | ||
− | + | थोड़ी-सी राजनीति सुधरे | |
− | + | थोड़ा-सा जन-गण भी सुधरे | |
− | + | मीडिया चले सच के पथ पर | |
+ | छँट जायँ निराशा के कुहरे | ||
+ | शिक्षा के विस्तृत आँगन में | ||
+ | कुछ और हो सके परिवर्तन | ||
+ | नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन ! | ||
− | + | कोरोना दुनिया से जाये | |
+ | पहले-सी रौनक आ जाये | ||
+ | आतंकवाद का इस जग से | ||
+ | नामोनिशान ही मिट जाये | ||
+ | हर देश-देश का आपस में | ||
+ | कुछ और बढ़ सके हित-चिंतन | ||
+ | नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन ! | ||
− | + | हिंदी को जग में मान मिले | |
+ | अपने घर में पहचान मिले | ||
+ | भारत की सब भाषाओं को | ||
+ | पूरा-पूरा सम्मान मिले | ||
+ | हर बोली के हों शब्द-कोश | ||
+ | घोलें भाषा में मीठापन | ||
+ | नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन! | ||
+ | -डा. जगदीश व्योम | ||
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11:04, 30 नवम्बर 2023 के समय का अवतरण
आमों पर खूब बौर आए
भँवरों की टोली मअडराए
बगिया की अमराई में फिर
कोकिल पंचम स्वर में गाए
फिर उठें गंध के गुब्बारे
फिर महके अपना चन्दन वन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन !
गौरैया बिना डरे आए
घर में घोंसला बना जाए
छत की मुँडेर पर बैठ काग
कह काँव-काँव फिर उड़ जाए
मन में मिसिरी घुलती जाए
सबके आँगन हों सुखद सगुन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन !
बच्चों से छिने नहीं बचपन
वृद्धों का ऊबे कभी न मन
हो साथ जोश के होश सदा
मर्यादित बनी रहे फैशन
जिस्मों की यूँ न नुयाइश हो
बदरंग हो जाए घर आँगन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन !
घाटी में फिर से फूल खिलें
फिर रुके शिकारे तैर चलें
बह उठे प्रेम की मन्दाकिनि
हिम-शिखर हिमालय से पिघलें
सोनी मचले, महिबाल चले
राँझे की हीर करे नर्तन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन !
विज्ञान, ज्ञान के छुए शिखर
पर चले शांति के ही पथ पर
हिन्दी भाषा के पंख लगा
कम्प्यूटर जी पहुँचें घर-घर
वह देश रहे खुशहाल `व्योम'
धरती पर जहाँ प्रवासी जन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन!
थोड़ी-सी राजनीति सुधरे
थोड़ा-सा जन-गण भी सुधरे
मीडिया चले सच के पथ पर
छँट जायँ निराशा के कुहरे
शिक्षा के विस्तृत आँगन में
कुछ और हो सके परिवर्तन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन !
कोरोना दुनिया से जाये
पहले-सी रौनक आ जाये
आतंकवाद का इस जग से
नामोनिशान ही मिट जाये
हर देश-देश का आपस में
कुछ और बढ़ सके हित-चिंतन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन !
हिंदी को जग में मान मिले
अपने घर में पहचान मिले
भारत की सब भाषाओं को
पूरा-पूरा सम्मान मिले
हर बोली के हों शब्द-कोश
घोलें भाषा में मीठापन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनंदन!
-डा. जगदीश व्योम