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"सूरज इतना लाल हुआ / जगदीश व्योम" के अवतरणों में अंतर
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प्यासी हवा हाँफती | प्यासी हवा हाँफती | ||
फिर-फिर पानी खोज रही | फिर-फिर पानी खोज रही | ||
| − | सूखे कण्ठ-कोकिला, मीठी | + | सूखे कण्ठ-कोकिला, मीठी |
| − | बानी खोज रही | + | बानी खोज रही |
| − | नीम द्वार का, छाया खोजे | + | नीम द्वार का, छाया खोजे |
| − | पीपल गाछ तलाशे | + | पीपल गाछ तलाशे |
| − | नदी खोजती धार | + | नदी खोजती धार |
| − | कूल कब से बैठे हैं प्यासे | + | कूल कब से बैठे हैं प्यासे |
| − | पानी-पानी रटे | + | पानी-पानी रटे |
| − | रात-दिन, ऐसा ताल | + | रात-दिन, ऐसा ताल हुआ |
| − | जाने क्या हो गया, कि | + | जाने क्या हो गया, कि |
| − | सूरज इतना लाल | + | सूरज इतना लाल हुआ। |
| − | सूने-सूने राह, हाट, वन | + | |
| − | सब कुछ सूना-सूना | + | सूने-सूने राह, हाट, वन |
| − | बढ़ता जाता और दिनो-दिन | + | सब कुछ सूना-सूना |
| − | तेज धूप का दूना | + | बढ़ता जाता और दिनो-दिन |
| − | धरती व्याकुल, अम्बर व्याकुल | + | तेज धूप का दूना |
| − | व्याकुल ताल-तलैया | + | धरती व्याकुल, |
| − | पनघट, कुँआ, बावड़ी व्याकुल | + | अम्बर व्याकुल |
| − | व्याकुल बछड़ा गैया | + | व्याकुल ताल-तलैया |
| − | अब तो आस तुझी से बादल | + | पनघट, कुँआ, बावड़ी व्याकुल |
| − | क्यों कंगाल | + | व्याकुल बछड़ा-गैया |
| − | जाने क्या हो गया, कि | + | अब तो आस तुझी से बादल |
| − | सूरज इतना लाल | + | क्यों कंगाल हुआ |
| + | जाने क्या हो गया, कि | ||
| + | सूरज इतना लाल हुआ। | ||
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| + | -डॅा. जगदीश व्योम | ||
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11:14, 30 नवम्बर 2023 के समय का अवतरण
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।
प्यासी हवा हाँफती
फिर-फिर पानी खोज रही
सूखे कण्ठ-कोकिला, मीठी
बानी खोज रही
नीम द्वार का, छाया खोजे
पीपल गाछ तलाशे
नदी खोजती धार
कूल कब से बैठे हैं प्यासे
पानी-पानी रटे
रात-दिन, ऐसा ताल हुआ
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।
सूने-सूने राह, हाट, वन
सब कुछ सूना-सूना
बढ़ता जाता और दिनो-दिन
तेज धूप का दूना
धरती व्याकुल,
अम्बर व्याकुल
व्याकुल ताल-तलैया
पनघट, कुँआ, बावड़ी व्याकुल
व्याकुल बछड़ा-गैया
अब तो आस तुझी से बादल
क्यों कंगाल हुआ
जाने क्या हो गया, कि
सूरज इतना लाल हुआ।
-डॅा. जगदीश व्योम
