"अगर / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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− | और निर्विरोध रहते हो सबके | + | और निर्विरोध रहते हो सबके सन्देहों के प्रति भी |
− | अगर तुम | + | अगर तुम इन्तज़ार कर सकते हो |
− | और थकते नहीं हो | + | और थकते नहीं हो इन्तज़ारी से |
− | या लोगों के असत्यों का | + | या लोगों के असत्यों का आलम्बन होते हुए.. ख़ुद नहीं बुड़ते हो असत्यों में |
या लोगों के घृणा का आलंबन होते हुए, ख़ुद में जगह नहीं देते हो घृणा को | या लोगों के घृणा का आलंबन होते हुए, ख़ुद में जगह नहीं देते हो घृणा को | ||
और फिर भी, कोई बहुत अच्छे नहीं दिखते हो | और फिर भी, कोई बहुत अच्छे नहीं दिखते हो | ||
न तो बातें करते हो बहुत बुद्धिमता भरी | न तो बातें करते हो बहुत बुद्धिमता भरी | ||
− | अगर तुम सपने देख सकते | + | अगर तुम सपने देख सकते हो ― और सपनों को अपना मालिक नहीं बनाते हो |
− | अगर तुम विचार कर सकते | + | अगर तुम विचार कर सकते हो ― और विचारना ही अपना ध्येय नहीं बनाते हो |
− | अगर तुम भेंट कर सकते हो दोनों | + | अगर तुम भेंट कर सकते हो दोनों चालबाज़ों – विजय और विपत्ति – से एक समान भाव के साथ |
अगर तुम बर्दाश्त कर सकते हो सुनना | अगर तुम बर्दाश्त कर सकते हो सुनना | ||
मूर्खों को फाँसने के लिए | मूर्खों को फाँसने के लिए | ||
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अगर तुम बनाकर अपनी सारी उपलब्धियों का एक गट्ठर | अगर तुम बनाकर अपनी सारी उपलब्धियों का एक गट्ठर | ||
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− | और हार कर, कर सकते हो पुनः | + | और हार कर, कर सकते हो पुनः प्रारम्भ से आरम्भ |
और अपने क्षति पर कभी आह के शब्द नहीं कहते | और अपने क्षति पर कभी आह के शब्द नहीं कहते | ||
अगर तुम बाध्य कर सकते हो अपने हृदय और स्नायु और साहस को | अगर तुम बाध्य कर सकते हो अपने हृदय और स्नायु और साहस को | ||
− | तुम्हारा साथ देने के | + | तुम्हारा साथ देने के लिए, जबकि वे बहुत पहले ही दे चुके हों जवाब |
और इस तरह से अनवरत रह सकते हो, जब तुम्हारे पास कुछ भी न हो | और इस तरह से अनवरत रह सकते हो, जब तुम्हारे पास कुछ भी न हो | ||
सिवा उस इच्छा-शक्ति के जो कहती है उनसे 'कायम रहो' | सिवा उस इच्छा-शक्ति के जो कहती है उनसे 'कायम रहो' | ||
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अगर तुम एक निर्दयी मिनट के दरमियाँ | अगर तुम एक निर्दयी मिनट के दरमियाँ | ||
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..तो ये जहान तुम्हारा है, और वो सबकुछ जो इसमें है | ..तो ये जहान तुम्हारा है, और वो सबकुछ जो इसमें है | ||
− | और―इस सबसे बढ़कर―तुम | + | और―इस सबसे बढ़कर―तुम इनसान होगे, मेरे बच्चे ! |
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+ | '''मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : तरुण त्रिपाठी''' | ||
+ | '''लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए''' | ||
+ | Rudyard Kipling | ||
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+ | If you can keep your head when all about you | ||
+ | Are losing theirs and blaming it on you, | ||
+ | If you can trust yourself when all men doubt you, | ||
+ | But make allowance for their doubting too; | ||
+ | If you can wait and not be tired by waiting, | ||
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+ | If you can dream—and not make dreams your master; | ||
+ | If you can think—and not make thoughts your aim; | ||
+ | If you can meet with Triumph and Disaster | ||
+ | And treat those two impostors just the same; | ||
+ | If you can bear to hear the truth you’ve spoken | ||
+ | Twisted by knaves to make a trap for fools, | ||
+ | Or watch the things you gave your life to, broken, | ||
+ | And stoop and build ’em up with worn-out tools: | ||
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+ | If you can make one heap of all your winnings | ||
+ | And risk it on one turn of pitch-and-toss, | ||
+ | And lose, and start again at your beginnings | ||
+ | And never breathe a word about your loss; | ||
+ | If you can force your heart and nerve and sinew | ||
+ | To serve your turn long after they are gone, | ||
+ | And so hold on when there is nothing in you | ||
+ | Except the Will which says to them: ‘Hold on!’ | ||
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+ | If you can talk with crowds and keep your virtue, | ||
+ | Or walk with Kings—nor lose the common touch, | ||
+ | If neither foes nor loving friends can hurt you, | ||
+ | If all men count with you, but none too much; | ||
+ | If you can fill the unforgiving minute | ||
+ | With sixty seconds’ worth of distance run, | ||
+ | Yours is the Earth and everything that’s in it, | ||
+ | And—which is more—you’ll be a Man, my son! | ||
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19:24, 5 दिसम्बर 2023 के समय का अवतरण
अगर तुम आत्म-नियंत्रण रख सकते हो
जब, कि सब खो रहे हों तुम्हारे आसपास
और इसका आरोप करते हों तुम पर ही
अगर तुम आत्म-विश्वास रख सकते हो
जब हर कोई तुम पर सन्देह करता हो
और निर्विरोध रहते हो सबके सन्देहों के प्रति भी
अगर तुम इन्तज़ार कर सकते हो
और थकते नहीं हो इन्तज़ारी से
या लोगों के असत्यों का आलम्बन होते हुए.. ख़ुद नहीं बुड़ते हो असत्यों में
या लोगों के घृणा का आलंबन होते हुए, ख़ुद में जगह नहीं देते हो घृणा को
और फिर भी, कोई बहुत अच्छे नहीं दिखते हो
न तो बातें करते हो बहुत बुद्धिमता भरी
अगर तुम सपने देख सकते हो ― और सपनों को अपना मालिक नहीं बनाते हो
अगर तुम विचार कर सकते हो ― और विचारना ही अपना ध्येय नहीं बनाते हो
अगर तुम भेंट कर सकते हो दोनों चालबाज़ों – विजय और विपत्ति – से एक समान भाव के साथ
अगर तुम बर्दाश्त कर सकते हो सुनना
मूर्खों को फाँसने के लिए
धूर्तों द्वारा तोड़ा-मरोड़ा गया तुम्हारा बोला सच
या देख सकते हो सबकुछ टूटते हुए
सबकुछ जो तुमने अपनी ज़िन्दगी को दिया
और झुककर, बना कर तैयार कर सकते हो उन्हें टूटे-फूटे कलपुर्जों से
अगर तुम बनाकर अपनी सारी उपलब्धियों का एक गट्ठर
दाँव पर लगा सकते हो एक चित या पट के उछाल पर
और हार कर, कर सकते हो पुनः प्रारम्भ से आरम्भ
और अपने क्षति पर कभी आह के शब्द नहीं कहते
अगर तुम बाध्य कर सकते हो अपने हृदय और स्नायु और साहस को
तुम्हारा साथ देने के लिए, जबकि वे बहुत पहले ही दे चुके हों जवाब
और इस तरह से अनवरत रह सकते हो, जब तुम्हारे पास कुछ भी न हो
सिवा उस इच्छा-शक्ति के जो कहती है उनसे 'कायम रहो'
अगर तुम भीड़ से बहस कर सकते हो, और बरकरार रख सकते हो अपने सद्गुण
या राजाओं के साथ टहलते हुए, गँवाते नहीं हो ख़ुद में साधारणता का स्पर्श
अगर ना तो शत्रु ना ही प्यारे मित्र तुम्हें आहत कर सकते हैं
अगर हर सह-जीवी का तुम्हारे लिए महत्व है, और कोई उनमें विशिष्ट नहीं है
अगर तुम एक निर्दयी मिनट के दरमियाँ
भर सकते हो
लम्बी दौड़ के लिए मूल्यवान साठ सेकेंड्स
..तो ये जहान तुम्हारा है, और वो सबकुछ जो इसमें है
और―इस सबसे बढ़कर―तुम इनसान होगे, मेरे बच्चे !
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : तरुण त्रिपाठी
लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
Rudyard Kipling
If
If you can keep your head when all about you
Are losing theirs and blaming it on you,
If you can trust yourself when all men doubt you,
But make allowance for their doubting too;
If you can wait and not be tired by waiting,
Or being lied about, don’t deal in lies,
Or being hated, don’t give way to hating,
And yet don’t look too good, nor talk too wise:
If you can dream—and not make dreams your master;
If you can think—and not make thoughts your aim;
If you can meet with Triumph and Disaster
And treat those two impostors just the same;
If you can bear to hear the truth you’ve spoken
Twisted by knaves to make a trap for fools,
Or watch the things you gave your life to, broken,
And stoop and build ’em up with worn-out tools:
If you can make one heap of all your winnings
And risk it on one turn of pitch-and-toss,
And lose, and start again at your beginnings
And never breathe a word about your loss;
If you can force your heart and nerve and sinew
To serve your turn long after they are gone,
And so hold on when there is nothing in you
Except the Will which says to them: ‘Hold on!’
If you can talk with crowds and keep your virtue,
Or walk with Kings—nor lose the common touch,
If neither foes nor loving friends can hurt you,
If all men count with you, but none too much;
If you can fill the unforgiving minute
With sixty seconds’ worth of distance run,
Yours is the Earth and everything that’s in it,
And—which is more—you’ll be a Man, my son!