"स्वांग / राम सेंगर" के अवतरणों में अंतर
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बिना तेल के जले कढ़ाही | बिना तेल के जले कढ़ाही | ||
उन्हें पड़ी गीली पगड़ी की | उन्हें पड़ी गीली पगड़ी की | ||
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चारण-चौकीदार महल के | चारण-चौकीदार महल के | ||
छान रहे हैं भांग । | छान रहे हैं भांग । | ||
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15:38, 12 दिसम्बर 2023 के समय का अवतरण
तंत्रबुद्धि का हेकड़ जलवा
भावुकता के स्वांग ।
खोज रहे मरुथल में झरना
सब औरांगउटांग ।
बाहर उजले, भीतर काले
भव्य लगें दहिजार ओढ़कर
जनहित के नाम के दुशाले
दृष्टि-भाव जैसे मण्डी की चीज़ हुए हों
मूत रहे हैं कुत्ते सारे
उठा-उठा कर टांग ।
मसले वही पुराने,बासी
हित-अनहित सब अपने-अपने
अपनी-अपनी मथुरा-काशी
सीधी चाल साँप की होती या अज़गर की
बहुपार्श्वों से देख रहा
आलोचन ऊटपटांग ।
बारिश बिना टाट-गुदड़ी की
बिना तेल के जले कढ़ाही
उन्हें पड़ी गीली पगड़ी की
शोध-तमाशे में है रोटी, मची तबाही
चारण-चौकीदार महल के
छान रहे हैं भांग ।