भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुझसे चांद कहा करता है / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | मुझ से चाँद कहा करता है | + | मुझ से चाँद कहा करता है — |
चोट कड़ी है काल प्रबल की, | चोट कड़ी है काल प्रबल की, | ||
उसकी मुस्कानों से हल्की, | उसकी मुस्कानों से हल्की, | ||
− | राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है | + | राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है ! |
− | मुझ से चाँद कहा करता है | + | मुझ से चाँद कहा करता है — |
तू तो है लघु मानव केवल, | तू तो है लघु मानव केवल, | ||
पृथ्वी-तल का वासी निर्बल, | पृथ्वी-तल का वासी निर्बल, | ||
− | तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता | + | तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है ! |
− | मुझ से चाँद कहा करता है | + | मुझ से चाँद कहा करता है — |
तू अपने दुख में चिल्लाता, | तू अपने दुख में चिल्लाता, | ||
आँखो देखी बात बताता, | आँखो देखी बात बताता, | ||
− | तेरे दुख से कहीं कठिन दुख यह जग मौन सहा करता | + | तेरे दुख से कहीं कठिन दुख यह जग मौन सहा करता है ! |
− | मुझ से चाँद कहा करता है | + | मुझ से चाँद कहा करता है — |
</poem> | </poem> |
17:46, 13 दिसम्बर 2023 के समय का अवतरण
मुझ से चाँद कहा करता है —
चोट कड़ी है काल प्रबल की,
उसकी मुस्कानों से हल्की,
राजमहल कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है !
मुझ से चाँद कहा करता है —
तू तो है लघु मानव केवल,
पृथ्वी-तल का वासी निर्बल,
तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है !
मुझ से चाँद कहा करता है —
तू अपने दुख में चिल्लाता,
आँखो देखी बात बताता,
तेरे दुख से कहीं कठिन दुख यह जग मौन सहा करता है !
मुझ से चाँद कहा करता है —