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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
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<poem>
मुझ से चाँद कहा करता है —
चोट कडी कड़ी है काल प्रबल की,<br>उसकी मुस्कानों से हल्की,<br>राजमहल कितनी कितने सपनों का पल में नित्य ढहा करता है,<br>!मुझसे चांद मुझ से चाँद कहा करता है<br>
तू तो है लघु मानव केवल,
पृथ्वी-तल का वासी निर्बल,
तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ से नित्य बहा करता है !
मुझ से चाँद कहा करता है —
तू तो है लघु मानव केवल,<br>पृथ्वी तल का वासी निर्बल,<br>तारों का असमर्थ अश्रु भी नभ में नित्य बहा करता है,<br>मुझसे चांद कहा करता है<br>  तू अपने दुख में चिल्लाता,<br>आंखो आँखो देखी बात बताता,<br>तेरे दुख से कहीं कठिन दुख यह जग मौन सहा करता है<br>!मुझसे चांद मुझ से चाँद कहा करता है<br/poem>
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