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"अब मैं बूढ़ा हो रहा हूँ / प्रभात" के अवतरणों में अंतर

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अब मैं बूढ़ा हो रहा हूँ
अब मैं जल्दी जल्दी बूढ़ा हो रहा हूँ
अब मैं उधर जा रहा हूँ जिधर से आया हूँ
मैं धीरे धीरे जा रहा हूँ अपनी ही उम्र में वापस
जब मैं बयालीस का था
और यह जीवन मेरा
नहीं था ज़रा भी इक्कीस
जब मैं चालीस का था
नहीं था जरा भी बीस
जब मैं बत्तीस का था
यही सोचता था
कविता होती उन्नीस
जब मैं चौबीस का था
इस सृष्टि में एक और सृष्टि देख ली थी
जिसके आगे यह सृष्टि फीकी थी
समुद्रों से अधिक गहरा एक हृदय
बारिशों से अधिक सींचने वाली आँख की कोर का पानी
जब मैं बीस का था और बेवजह बेचैन रहता था
जब चौदह का था और कापियों में सवालों के जवाब लिखता था
जब मैं आठ का था चार चाँटे रोज़ खाता
जब मैं पाँच का था मेमने सा खेलता था
अब मैं मन्द चाल से लौट रहा हूँ उस दिन में
जब मैं एक दिन का था
और मेरी माँ भी थी तब इस दुनिया में

जीवन के शुरुआती दिनों में तो कुछ करना ही नहीं है
कुनमुनाते रहना है निर्ध्वनि फूलों की तरह
दूध के लिए रोना है और मुस्कराते रहना है
उस दुनिया को देख-देखकर जिसमें आगे जीना है
माँ थोड़ा भी कहीं इधर उधर जाए तो इतना ज़ोर से
रोना शुरू कर देना है कि वह दूर जाने का साहस न कर सके
आगे फिर मेमने की तरह जीने के दिन आ ही रहे हैं
जिन दिनों में बच्चे भी मुझे गोद में लिए-लिए फिरें
और मेरे साथ ही खेलना चाहें दिन-दिन भर

मैं बूढ़ा हो रहा हूँ
और यह दुनिया भी बूढ़ी हो रही है
इस दुनिया का भी एक बचपन था
एक जवानी और अब यह बुढ़ापा
जिसमें वह ज़रूरत भर नहीं
ज़रूरत से कहीं ज़्यादा ताक़तवर है
दुनिया को ही नष्ट कर सकने की इसकी बूढ़ी ताक़त
सिर्फ खाँसने के काम आती है
यह ऐसा ज़हरीला खाँसती है कि इसकी खाँसी के दायरे में
जो भी आते हैं जितने भी आते हैं मारे जाते हैं
लेकिन मेरी खाँसी अलग है
जीवन की थकान की खाँसी है यह दम टूटने की

दुनिया को भी चाहिए कि फिर से शुरू करे मेरी तरह
और क्यों नहीं जब यह आदिम काल में पहुँच ही गई
शिकार के सिवा कुछ जानती ही नहीं

अभी मैं इक्यावन का हूँ
कुछ समय तो अभी भी है मेरे पास
अब मैं रहूँगा गाँवभर के बच्चों के साथ
उन्हीं से उम्मीद है बस
कभी कभी घनी रात में अकेला खड़ा रहता हूँ पृथ्वी पर
निश्शब्द टेरता एक बूढ़ा, उन्हें
जो सूर्योदय की तरह जन्म ले रहे हैं
आ रहे हैं पृथ्वी पर
दुनिया की सबसे कोमल आवाज़ में गाते हुए

24.11.23