भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कितने दिन बाद / केशव तिवारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव तिवारी |अनुवादक= |संग्रह=नदी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:21, 28 जनवरी 2024 के समय का अवतरण

कितने दिन बाद सद्यः प्रसवा गाय को
अपने बछड़े शिशु को चाटते - चोकड़ते
देखा - सुना

दूध से औराते तने थन

कितने दिन बाद देर तक सुनता रहा
बकरियों का अपने परिवार के साथ
सामूहिक स्वर

जम के झऊणी दरवाज़े की नीम की
मोटाई डार

कितने दिन बाद लगभग आँख खो चुकी
पूर्वहिन आजी ने टोया मेरा चेहरा

हाथ पकड़ पूछा कहाँ रह्या एतने दिन
दुल्हिन आय अहैं की नाहीं

दिखा विपत्ति का खूँटा जस का तस
दरवाज़ों पर गड़ा

ओझा दिखे सोखा
काली के थान पर
अभूवाती स्त्रियाँ

घाम तापते
पण्डा दिखे, परधान दिखे

जिसे नहीं देखना चाहता था, वह भी दिखा
कितना दिखा - अनदिखा
कहा - अनकहा

कितने बाद मथुरा काका ने
पिता के नाम से देख के पुकारा मुझे

कितने दिन बाद दिखे
वही तकलीफ़ भरे चेहरे

जो कुछ ख़ास बोले नहीं, हाल लिया
और बुझे क़दमों से चले गए