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14:23, 20 नवम्बर 2008 का अवतरण
अब नही उनसे यारी रख
अपनी लडाई जारी रख
भूख गरीबी के मसले पे
अब इक पत्थर भारी रख
कवि मंचों पर बने विदूषक
उनके नाम मदारी रख
भीड़ भाड़ में खो मत जाना
अपनी अलग चिन्हारी रख