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सिहर गए गाँव शहर
काँपतीं दिशाएँ
आवारा घूम रहीं
शीत कन्याएँ
बेखटके छेड़ रही
चुलबुली हवा
चुटकी भर धूप ही
दर्द की दवा
पीपल के पातों के
दाँत किटकिटाएँ
शीत कन्याएँ
आलपिनें चुभो रही
नटखटिया साँझ
किरन किरन सूरज की
लगती है बाँझ
पोरों पे महीनों को
गिनती इच्छाएँ
शीत कन्याएँ