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"मेरे प्रेम दिये को भाता तेरा अँगना था / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर
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मेरे प्रेम दिये को भाता तेरा अँगना था। | मेरे प्रेम दिये को भाता तेरा अँगना था। | ||
− | शायद | + | शायद क़िस्मत में तेरे होंठों से बुझना था। |
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− | मुझे पिलाकर लूट लिया जिसने वो | + | मुझे पिलाकर लूट लिया जिसने वो ग़ैर नहीं, |
मेरे दिल में रहने वाला मेरा अपना था। | मेरे दिल में रहने वाला मेरा अपना था। | ||
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सच था वो लम्हा या कोई दिन का सपना था। | सच था वो लम्हा या कोई दिन का सपना था। | ||
− | छोड़ गए सब रहबर साथ मेरा बारी बारी, | + | छोड़ गए सब रहबर साथ मेरा बारी-बारी, |
− | मैं था एक | + | मैं था एक मुसाफ़िर मुझको फिर भी चलना था। |
अब ज़िंदा हूँ या मुर्दा ये कहना मुश्किल है, | अब ज़िंदा हूँ या मुर्दा ये कहना मुश्किल है, | ||
− | प्यार न देती गर विष में वो तब तो मरना था। | + | प्यार न देती गर विष में वो तब तो मरना था। |
− | फ़र्क़ नहीं था | + | फ़र्क़ नहीं था विजय पराजय में कुछ भी ‘सज्जन’, |
अपने दिल के टुकड़े से ही उसको लड़ना था। | अपने दिल के टुकड़े से ही उसको लड़ना था। | ||
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17:16, 24 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण
मेरे प्रेम दिये को भाता तेरा अँगना था।
शायद क़िस्मत में तेरे होंठों से बुझना था।
मुझे पिलाकर लूट लिया जिसने वो ग़ैर नहीं,
मेरे दिल में रहने वाला मेरा अपना था।
जाने से पहले वो सीने से लग के रोई,
सच था वो लम्हा या कोई दिन का सपना था।
छोड़ गए सब रहबर साथ मेरा बारी-बारी,
मैं था एक मुसाफ़िर मुझको फिर भी चलना था।
अब ज़िंदा हूँ या मुर्दा ये कहना मुश्किल है,
प्यार न देती गर विष में वो तब तो मरना था।
फ़र्क़ नहीं था विजय पराजय में कुछ भी ‘सज्जन’,
अपने दिल के टुकड़े से ही उसको लड़ना था।