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"चिड़िया की जाँ लेने में इक दाना लगता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र" के अवतरणों में अंतर

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जाँच, समितियों से करवाकर क्या मिल जाएगा,
 
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उसके घर में साँझ सबेरे थाना लगता है।
 
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17:18, 24 फ़रवरी 2024 के समय का अवतरण

चिड़िया की जाँ लेने में एक दाना लगता है।
पालन कर के देखो एक ज़माना लगता है।

जय-जय के पागल नारों ने कर्म किए ऐसे,
हर जयकारा अब ईश्वर पर ताना लगता है।

मीठे लगते सबको ढोल बजें जो दूर कहीं,
गाँवों का रोना दिल्ली को गाना लगता है।

कल तक झोपड़ियों के दिये बुझाने का मुजरिम,
सत्ता पाने पर सबको परवाना लगता है।

टूटेंगें विश्वास कली से मत पूछो कैसा,
यौवन देवों को देकर मुरझाना लगता है।

जाँच, समितियों से करवाकर क्या मिल जाएगा,
उसके घर में साँझ सबेरे थाना लगता है।