भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"टाँग हाथ में आई / राम सेंगर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम सेंगर |अनुवादक= |संग्रह=बची एक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:39, 2 मार्च 2024 के समय का अवतरण
अन्तिम छोर तलक धकियाया
नीचे गहरी खाई ।
पलटे तो आलम बदल गया
टाँग हाथ में आई ।
ब्रह्मफाँस -सी जकड़
अकड़ की रग-रग ढीली-ढीली ।
कसमस करे, हँसे पाखण्डी
कर टक नीली-पीली ।
दमित-रुद्ध में ताक़त उमड़ी
लटकी देह उठाई ।
पलटवार का तर्क़ खोलकर
पीड़ित ने दे मारा ।
वर्गयुद्ध का खेल
बन गया अद्भुत एक नज़ारा ।
औचक-भौचक, भर यक़ीन से
देखें लोग-लुगाई ।