"भर्ती उनके जीवन में शंकराचार्य के मोक्ष की तरह थी / नेहा नरुका" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नेहा नरुका |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 27: | पंक्ति 27: | ||
अनाज उगाया करते थे, हल चलाया करते थे, | अनाज उगाया करते थे, हल चलाया करते थे, | ||
भरपेट रोटियों के लिए तरसा करते थे, | भरपेट रोटियों के लिए तरसा करते थे, | ||
− | फिर ब्रितानिया हुकूमत आई, वे लाल वर्दी वाले सिपाही हो गए | + | फिर ब्रितानिया हुकूमत आई, |
+ | वे लाल वर्दी वाले सिपाही हो गए | ||
वे बीहड़ में बन्दूक लेकर भाग गए, | वे बीहड़ में बन्दूक लेकर भाग गए, | ||
अपने ही बाग़ी भाई को ढूँढ़-ढूँढ़कर मारने लगे | अपने ही बाग़ी भाई को ढूँढ़-ढूँढ़कर मारने लगे | ||
− | कहते हैं उन बाग़ियों की आत्मा आज भी चम्बल में भटकती है | + | कहते हैं उन बाग़ियों की आत्मा |
+ | आज भी चम्बल में भटकती है | ||
बकौल फ़ौज ये सुखी हैं | बकौल फ़ौज ये सुखी हैं | ||
पंक्ति 43: | पंक्ति 45: | ||
भूत-भविष्य दोनों से… | भूत-भविष्य दोनों से… | ||
− | पर भर्ती उनके जीवन में शंकराचार्य के मोक्ष की तरह थी | + | पर भर्ती उनके जीवन में |
− | वे कुछ भी छोड़ सकते थे पर भर्ती देखना नहीं छोड़ सकते थे | + | शंकराचार्य के मोक्ष की तरह थी |
+ | वे कुछ भी छोड़ सकते थे | ||
+ | पर भर्ती देखना नहीं छोड़ सकते थे | ||
वे भर्ती देख रहे हैं… | वे भर्ती देख रहे हैं… | ||
वे नंग-धड़ंग गालियाँ खाते हुए | वे नंग-धड़ंग गालियाँ खाते हुए |
14:15, 17 मार्च 2024 के समय का अवतरण
वे अर्जुनपुरा, सुनारपुरा, छोन्दा, कनैरा से दौड़कर आए
नहर-बम्बा फाँदकर ग्वालियर पहुँचे
वहाँ पहुँचकर सिपाही छाँटने वाली लाइन में लग गए
वे चम्बल के बीहड़ में बसे गाँवों में रहने वाले लड़के थे
उन्होंने बड़ी मुश्किल से किया था आठवीं-दसवीं पास
उनका ध्यान पढ़ने से अधिक रहा ऊँची कूद-लम्बी कूद और
सौ मीटर की दौड़ में
भैंस का एक किलो दूध उन्हें सूद देकर पिलाया गया
मैश की अधजली रोटियों के क़िस्से
उन्हें जुनून की तरह सुनाए गए
उनके गाँव से विकास की कोई पक्की सड़क नहीं गुज़री,
अलबत्ता उनके गाँव ज़रूर विकास की जुगत में
भिण्ड, मुरैना, ग्वालियर में समा गए
उनके पुरखे प्रकृति के साथ मिलकर
सादा जीवन जिया करते थे,
अनाज उगाया करते थे, हल चलाया करते थे,
भरपेट रोटियों के लिए तरसा करते थे,
फिर ब्रितानिया हुकूमत आई,
वे लाल वर्दी वाले सिपाही हो गए
वे बीहड़ में बन्दूक लेकर भाग गए,
अपने ही बाग़ी भाई को ढूँढ़-ढूँढ़कर मारने लगे
कहते हैं उन बाग़ियों की आत्मा
आज भी चम्बल में भटकती है
बकौल फ़ौज ये सुखी हैं
जूते में दाल खाने वाले
गाँड़ में दिमाग़ रखने वाले
ये गवाँर
ये सुख-दुख क्या जानें
पर भर्ती देखने वाले लड़के जानते थे
जानते थे कि वे ठगे गए हैं
वे निरन्तर ठगे जा रहे हैं
भूत-भविष्य दोनों से…
पर भर्ती उनके जीवन में
शंकराचार्य के मोक्ष की तरह थी
वे कुछ भी छोड़ सकते थे
पर भर्ती देखना नहीं छोड़ सकते थे
वे भर्ती देख रहे हैं…
वे नंग-धड़ंग गालियाँ खाते हुए
ग्वालियर मेला मैदान में भर्ती देख रहे हैं ।
— 2023