भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इस गली के आख़िर में / कुमार रवींद्र" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |संग्रह= }} <Poem> इसी गली के आख़िर में ...)
(कोई अंतर नहीं)

20:51, 20 नवम्बर 2008 का अवतरण

इसी गली के
आख़िर में है
एक लखौरी ईंटों का घर

किस पुरखे ने था बनवाया
दादी को भी पता नहीं है
बसा रहा
अब उजड़ रहा है
इसमें इसकी ख़ता नहीं है

एक-एक कर
लड़के सारे
निकल गए हैं इससे बाहर
बड़के की नौकरी बड़ी थी
उसे मिली कोठी सरकारी
पता नहीं कितने सेठों ने
उसकी है आरती उतारी

नदी-पार की
कालोनी में
कोठी बनी नई है सुंदर

मँझले-छुटके ने भी
देखादेखी
बाहर फ्लैट ले लिए
दादी-बाबा हैं जब तक
तब तक ही
घर में जलेंगे दिये

पीपल है
आंगन में
उस पर भी रहता है अब तो पतझर ।