भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"प्रगति की राह में अब भी अगर जंगल नहीं होगा / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=रास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:58, 23 मार्च 2024 के समय का अवतरण
प्रगति की राह में अब भी अगर जंगल नहीं होगा
तो कल की पीढ़ियों के हिस्से में भी कल नहीं होगा
दिमाग़ी कसरतों से वाह-वाही लूट लेंगे हम
मगर ऐसी ग़ज़ल से कोई भी विह्वल नहीं होगा
सँभलना, सामने बाज़ार आदमखोर जैसा है
कि जिनकी आस्थाओं में कोई मंगल नहीं होगा
किसी को घिसने से वो पैना तो हो सकता है लेकिन
महक होगी नहीं उसमें कि जो संदल नहीं होगा
कोई हल ज़िन्दगी में पा नहीं सकते समस्या का
हमारी कोशिशों के काँधे पे गर हल नहीं होगा
अभी इस क्वार में भी हल्कू का तन थरथराता है
वो जब भी सोचता है पूस में कंबल नहीं होगा
अभी तो गाँव से बरगद ही ग़ायब हैं हुए 'राहुल'
वो दिन भी आएँगे जब घर में तुलसीदल नहीं होगा