भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वो अपने ज़िन्दगी भर की कमाई दे रहा है / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=रास...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:01, 23 मार्च 2024 के समय का अवतरण

वो अपने ज़िन्दगी भर की कमाई दे रहा है
शजर बूढ़ा है लेकिन पाई-पाई दे रहा है

सही है या ग़लत है यह दिखाई दे रहा है
वो अपनी बात की कितनी सफ़ाई दे रहा है

हमारे कमरे की दीवारें कल चुगली करेंगी
ज़रा धीरे कहो, उनको सुनाई दे रहा है

नशे-सा वह उतरता जा रहा है इन रगों में
उसे पूछो कि वो कैसी दवाई दे रहा है

उजाले में भी तुम उसको नहीं क्यों देख पाये
अँधेरे में भी जो मुझको दिखाई दे रहा है

जो मेरी हार की ही कामना करता रहा था
वो मेरी जीत पर आकर बधाई दे रहा है

वो इतनी दूर तक फैला हुआ है मेरे भीतर
जुदा होकर भी मुझको कब जुदाई दे रहा है

मेरे अंदर से मुझको खींच लाया है वो बाहर
वफ़ा की क़ैद से कैसी रिहाई दे रहा है