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"बस कंठ नीले ना हुए हैं / वैभव भारतीय" के अवतरणों में अंतर

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00:10, 25 मार्च 2024 के समय का अवतरण

ज़हर हम सबने पिया
बस कंठ नीले ना हुए हैं
जी गया सुकरात बस
दर्शन नशीले हो गये हैं।

क्यों कहो दुनिया अजब है
महज़ गिनती में सजग है
जब तलक है साँस जग में
तुम अलग हो, सब अलग हैं।

ज़िंदगी का फ़लसफ़ा
युद्धों से कुछ-कुछ मेला खाता
रख दिये हथियार जिसने
रह गया वह ही अभागा।