"तुम्हारे न रहने पर / तसलीमा नसरीन / गरिमा श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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+ | जाती हूँ जब भी बाहर टहलने | ||
+ | तुम नहीं होते हो मेरे पास | ||
+ | रेस्तराँ, सिनेमा, थियेटर, कँसर्ट, दुकान-बाज़ार | ||
+ | तुम नहीं होते मेरे पास | ||
+ | घर लौट आती हूँ थकी हुई | ||
+ | तुम नहीं होते मेरे पास | ||
+ | लेट जाती हूँ बिछौने पर मैं एकाकी | ||
+ | तुम नहीं होते मेरे पास | ||
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+ | अब तुम हो कहीं और | ||
+ | शायद मिल गया है तुम्हें नूतन संग | ||
+ | या कर रहे होगे हंसी-ठट्ठा पुराने संगी के साथ | ||
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+ | अब तो यह जानने को भी इच्छुक नहीं मैं | ||
+ | कि तुम हो कहाँ, किसके साथ और कर रहे हो क्या ? | ||
+ | जहाँ भी हो रहो वहीं ,चाहती हूँ यही | ||
+ | हाथ भी न बढ़ाओ मेरे जीवन की ओर | ||
+ | यही चाहती हूँ | ||
+ | पाँव भी न धरो मेरे रास्ते पर | ||
+ | यही चाहती हूँ । | ||
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+ | आश्वस्त हूँ यह जान कि तुम नहीं हो | ||
+ | अपने संसार में हूँ सिर्फ़ मैं | ||
+ | मेरा संसार अब सिर्फ़ मेरा है, | ||
+ | जबकि इतने दिनों तक तुम्हारा संसार तो था ही तुम्हारा | ||
+ | मेरा संसार भी तो तुम्हारा ही था | ||
+ | जिसे छीन लिया था तुमने । | ||
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+ | इस छीनने को ही नाम दिया तुमने प्यार का | ||
+ | मेरे केश पकड़ जब तुम खींचते | ||
+ | लगाते मेरे गाल पर चाँटा | ||
+ | समझती मैं यह तुम्हारे प्यार का अधिकार है | ||
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+ | प्यार के अधिकार से | ||
+ | तुम घुमाते मेरे जीवन को तलहथी पर लट्टू-सा | ||
+ | खेला करते बच्चों की तरह मनमाफ़िक । | ||
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+ | जिस दिन मारी लात तुमने मेरी पीठ पर | ||
+ | समझा मैंने तुम्हारे क्रोध का कारण ख़ुद को | ||
+ | प्यार नहीं कर पाती तुम्हें ठीक-ठीक | ||
+ | हो गए हो तुम इसलिए पागल | ||
+ | प्यार करते हुए तुम ख़ुद को ही | ||
+ | खोखला करते हो बारम्बार । | ||
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+ | अब तुम नहीं हो | ||
+ | अब मैं गुड़िया नहीं तुम्हारे खेल की | ||
+ | लट्टू नहीं संगमरमरी | ||
+ | पतंग भी नहीं लटाई वाली | ||
+ | रेत -धूल भी नहीं | ||
+ | खरपतवार भी नहीं | ||
+ | मेरुदण्ड सीधा कर खड़ी | ||
+ | आपादमस्तक मनुष्य हूँ मैं | ||
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+ | तुम्हारे न रहने ने मिलाया है मुझको मुझसे | ||
+ | तुम्हारे न रहने ने सिखाया है मुझको ख़ुद से प्यार करना | ||
+ | तुम्हारे न रहने ने सिखाया है ताक़तवर बनना | ||
+ | तुमने रहकर भी इतना कल्याण नहीं किया | ||
+ | जितना तुम्हारे न रहने ने | ||
+ | |||
+ | तुम इतने अर्थमय नहीं थे जितनी तुम्हारी अनुपस्थिति | ||
+ | इतने तो तुम उत्सव नहीं थे जितनी तुम्हारी अनुपस्थिति | ||
+ | चाहती हूँ प्राणपण से तुम्हारे न रहने को | ||
+ | |||
+ | प्यार में अगर मुझे कुछ देना चाहो | ||
+ | मणि-माणिक्य नहीं, लाल गुलाब भी नहीं | ||
+ | तुम्हारा स्पर्श नहीं, आलिंगन भी नहीं | ||
+ | चुम्बन नहीं, प्रेमिल शब्दों का उच्चारण भी नहीं | ||
+ | नैकट्य नहीं, दो क्षण भी नहीं | ||
+ | |||
+ | देना चाहो तो | ||
+ | दो मुझे | ||
+ | अपना न रहना । | ||
'''मूल बंगला भाषा से अनुवाद : गरिमा श्रीवास्तव''' | '''मूल बंगला भाषा से अनुवाद : गरिमा श्रीवास्तव''' | ||
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15:33, 1 अप्रैल 2024 के समय का अवतरण
जाती हूँ जब भी बाहर टहलने
तुम नहीं होते हो मेरे पास
रेस्तराँ, सिनेमा, थियेटर, कँसर्ट, दुकान-बाज़ार
तुम नहीं होते मेरे पास
घर लौट आती हूँ थकी हुई
तुम नहीं होते मेरे पास
लेट जाती हूँ बिछौने पर मैं एकाकी
तुम नहीं होते मेरे पास
अब तुम हो कहीं और
शायद मिल गया है तुम्हें नूतन संग
या कर रहे होगे हंसी-ठट्ठा पुराने संगी के साथ
अब तो यह जानने को भी इच्छुक नहीं मैं
कि तुम हो कहाँ, किसके साथ और कर रहे हो क्या ?
जहाँ भी हो रहो वहीं ,चाहती हूँ यही
हाथ भी न बढ़ाओ मेरे जीवन की ओर
यही चाहती हूँ
पाँव भी न धरो मेरे रास्ते पर
यही चाहती हूँ ।
आश्वस्त हूँ यह जान कि तुम नहीं हो
अपने संसार में हूँ सिर्फ़ मैं
मेरा संसार अब सिर्फ़ मेरा है,
जबकि इतने दिनों तक तुम्हारा संसार तो था ही तुम्हारा
मेरा संसार भी तो तुम्हारा ही था
जिसे छीन लिया था तुमने ।
इस छीनने को ही नाम दिया तुमने प्यार का
मेरे केश पकड़ जब तुम खींचते
लगाते मेरे गाल पर चाँटा
समझती मैं यह तुम्हारे प्यार का अधिकार है
प्यार के अधिकार से
तुम घुमाते मेरे जीवन को तलहथी पर लट्टू-सा
खेला करते बच्चों की तरह मनमाफ़िक ।
जिस दिन मारी लात तुमने मेरी पीठ पर
समझा मैंने तुम्हारे क्रोध का कारण ख़ुद को
प्यार नहीं कर पाती तुम्हें ठीक-ठीक
हो गए हो तुम इसलिए पागल
प्यार करते हुए तुम ख़ुद को ही
खोखला करते हो बारम्बार ।
अब तुम नहीं हो
अब मैं गुड़िया नहीं तुम्हारे खेल की
लट्टू नहीं संगमरमरी
पतंग भी नहीं लटाई वाली
रेत -धूल भी नहीं
खरपतवार भी नहीं
मेरुदण्ड सीधा कर खड़ी
आपादमस्तक मनुष्य हूँ मैं
तुम्हारे न रहने ने मिलाया है मुझको मुझसे
तुम्हारे न रहने ने सिखाया है मुझको ख़ुद से प्यार करना
तुम्हारे न रहने ने सिखाया है ताक़तवर बनना
तुमने रहकर भी इतना कल्याण नहीं किया
जितना तुम्हारे न रहने ने
तुम इतने अर्थमय नहीं थे जितनी तुम्हारी अनुपस्थिति
इतने तो तुम उत्सव नहीं थे जितनी तुम्हारी अनुपस्थिति
चाहती हूँ प्राणपण से तुम्हारे न रहने को
प्यार में अगर मुझे कुछ देना चाहो
मणि-माणिक्य नहीं, लाल गुलाब भी नहीं
तुम्हारा स्पर्श नहीं, आलिंगन भी नहीं
चुम्बन नहीं, प्रेमिल शब्दों का उच्चारण भी नहीं
नैकट्य नहीं, दो क्षण भी नहीं
देना चाहो तो
दो मुझे
अपना न रहना ।
मूल बंगला भाषा से अनुवाद : गरिमा श्रीवास्तव