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"मैं नारी / ईप्सिता षडंगी / हरेकृष्ण दास" के अवतरणों में अंतर

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पैदा हुई मैं जब ।
  
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माँ ने कहा — अब तू रजस्वला है ।
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सीखना पड़ा मुझे
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अन्दर ही अन्दर सिमट जाना । सीखी मैंने लाज।
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खो दिया मैंने अपना अधिकार
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पापा और भैया के पास उठने बैठने का
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शिखा मिटना ,समेटना, सहना- मिट्टी सा।
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छोड़ आई थी मैं अल्हड़ अंगड़ाइयाँ सब
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बचपन के कोमल नर्म बिस्तर पर जब मैंने शादी की !!
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अब मैं और मेरी अनिच्छा
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बैठे हैं आमने सामने
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बन्द करके दरवाज़े सारे
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अंधेरे में
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अपनी-अपनी अस्मिता को ढूँढ़ते हुए ।
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कोशिश में लगे हैं  अभी
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लाद देने को अपनी अपनी कामनाएँ ,अभिमान ,अहंकार
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और असूया को
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एक दूसरे के कंधो पर।
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हार और जीत
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सब कुछ एक है यहाँ
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यादों में गुम
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अपने ख़यालातों के अस्पष्ट बिंदुओं में
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समाए हैं जैसे ।।
  
 
'''ओड़िआ से अनुवाद : हरेकृष्ण दास'''
 
'''ओड़िआ से अनुवाद : हरेकृष्ण दास'''
 
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07:37, 20 मई 2024 का अवतरण

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सौंप आई थी मैं अपना अल्हड़पन
माँ की जरायू के उस फूल को
नष्ट होने के लिए मिट्टी में दबते हुए
पैदा हुई मैं जब ।

बड़ी हुई में
माँ ने कहा — अब तू रजस्वला है ।
सीखना पड़ा मुझे
अन्दर ही अन्दर सिमट जाना । सीखी मैंने लाज।

खो दिया मैंने अपना अधिकार

पापा और भैया के पास उठने बैठने का
शिखा मिटना ,समेटना, सहना- मिट्टी सा।

छोड़ आई थी मैं अल्हड़ अंगड़ाइयाँ सब
बचपन के कोमल नर्म बिस्तर पर जब मैंने शादी की !!

अब मैं और मेरी अनिच्छा
बैठे हैं आमने सामने
बन्द करके दरवाज़े सारे
अंधेरे में
अपनी-अपनी अस्मिता को ढूँढ़ते हुए ।

कोशिश में लगे हैं अभी
लाद देने को अपनी अपनी कामनाएँ ,अभिमान ,अहंकार
और असूया को
एक दूसरे के कंधो पर।

हार और जीत
सब कुछ एक है यहाँ
यादों में गुम
अपने ख़यालातों के अस्पष्ट बिंदुओं में
समाए हैं जैसे ।।

ओड़िआ से अनुवाद : हरेकृष्ण दास