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"भारत यायावर के लिए / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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23:58, 22 मई 2024 के समय का अवतरण

तुम क्या गए ये पृथ्वी सूनी हो गई
जैसे काटने को दौड़ता है हर दिन
कैसे बिताऊँ यह जीवन पहाड़-सा
अब तुम ही बताओ, तुम्हारे बिन

उड़ रहे नभ में कविताओं के बीच
तुम बन गए फूलों का पराग
कवियों के मन में बस गए हो तुम
कभी राग बन झरते हो, कभी आग