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"अब इतने टूटे सपनों का मैं बोझा ढो नहीं सकती / अर्चना जौहरी" के अवतरणों में अंतर

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23:39, 31 मई 2024 के समय का अवतरण

अब इतने टूटे सपनों का मैं बोझा ढो नहीं सकती
ना जिसमें पौध हो ऐसी फ़सल मैं बो नहीं सकती

मैं ऐसी हूँ कि वैसी हूँ मैं जैसी हूँ हाँ वैसी हूँ
मैं जैसी हूँ नहीं वैसी कभी भी हो नहीं सकती

बड़ी हैरान हूँ ख़ुद पर करूं भी तो करूं मैं क्या
मेरी आँखों में आँसू हैं मगर मैं रो नहीं सकती

नही है ख़ौफ़ राहों का न ही रहबर की चाहत है
मेरी नज़रे हैं मंज़िल पर कभी मैं खो नहीं सकती

बड़ी गहरी उदासी से अभी तो नींद टूटी है
बुलाएँ कितने भी सपने मगर मैं सो नहीं सकती