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"ज़िंदगी में हर किसी को रोशनी की चाह है / अर्चना जौहरी" के अवतरणों में अंतर
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ज़िंदगी में हर किसी को रोशनी की चाह है
फिर जला हो घर या दीपक ये किसे परवाह है
है लिखी क़िस्मत में जितनी रौशनी उतनी मिलें
रात चमकीली अगर तो दिन बहुत सियाह है
मोम तो पिघला किए पर लौ जले है शान से
जो किसी की है ख़ुशी वह ही किसी की आह है
शेर सुन कर वाह तो कह देते हैं सब ही मगर
दिल से निकले आह जो वह ही तो सच्ची वाह है
राह फूलों से भरी हो या डगर काटों भरी
जा मिले मंज़िल तलक जो बस वही तो राह है