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उड़ चल हारिल / अज्ञेय

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|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=इत्यलम् / अज्ञेय
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तू मिट्टी था, किन्तु आज
मिट्टी को तूने बाँध लिया है
तू था सृष्टि किन्तु सृष्टा स्रष्टा का
गुर तूने पहचान लिया है!
उड़ चल हारिल लिये हाथ में
एक अकेला पावन तिनका!
 
'''गुरदासपुर, 2 अक्टूबर, 1938'''
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