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"भालू की नाक / अवधेश कुमार" के अवतरणों में अंतर

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17:18, 7 जून 2024 के समय का अवतरण

 शहर में भालू आया
आलू लाया
पहाड़ से
शहरियों के लिए
औरतों के बदले में
आलू के बदले
औरतें देना आसान है
भालू को शहरियों के लिए ।

नाच दिखाया उसने
गश्त लगाई
गलियों में झाँका खिड़कियों के भीतर
पालनों में ।

अब पसन्द है उसे
नवजात शिशु
आलू के बदले
भालू को
अब दे रहे हैं नवजात शिशु शहरिए
आलू के बदले ।

सूँघने की शक्ति हो गई है तेज़ भालू की
नाक की
नाक को ऊपर घूमता है
सारे शहर में
भालू ।

भालू आया - भाला आया
आलू लाया - आलू लाया
(हर्ष चारों ओर घनघोर छाया)
नवजात शिशु सुनता है यह गाना
माना — उसके लिए यह बेमानी है
जब भी कोई नवजात शिशु आता है
नाक से ख़बर पहुँचती है भालू आता है ।

नाक हो गई है अत्यधिक सम्वेदनशील
भालू की
नाक भालू हो गई है
धड़ाक !
एक हल्का
कोमल प्यारा छोटा-सा
मगर कसकर मुक्का मारता है
नवजात शिशु भालू की नाक पर ।

पीड़ा से तिलमिलाता है भालू
आलू लेकर वापस भागा
वापस पहाड़ पर ।

शहर सुनसान है
ख़ाली मकान है
केवल एक नवजात शिशु
खोल रहा है
अपनी मुट्ठी !