भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं नाचूँ तुम गाओ / विष्णुकांत पांडेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णुकांत पांडेय |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:00, 9 जून 2024 के समय का अवतरण

उल्लू गया कबूतर के घर
बोला — भाई, आओ,
रात बहुत प्यारी लगती है
मैं नाचूँ, तुम गाओ ।

कहा कबूतर ने — भाई, तुम
सुबह - सुबह आ जाना,
तुम नाचो तो कौआ देखे
मैं भी गाऊँ गाना ।