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"रत्तीभर जगह / केतन यादव" के अवतरणों में अंतर

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22:34, 11 जून 2024 के समय का अवतरण

भाषा को न जाने
कितना समय लगेगा यह समझते
कि अलग नहीं है उनकी देह
मन भी उतने ही मिट्टी-पानी का बना है
उतना ही जितना लगता है सब में
उतनी ही जगह घेरते हैं वे ।

अचकचाते हुए सिर नीचे किए
निकल जाते हैं भीड़ से अलग होकर

कोई स्त्री कहाँ हो पाई किसी स्त्री की सगी
अधिक सगापन अप्राकृतिक है जहाँ पर
दो लड़कों का गले मिलना
कितने विशेषणों से भरा हुआ होता ।

लड़का और लड़की कभी दोस्त नहीं हो सकते
इससे कहीं अधिक कठिन है यह पचाना
कि लड़का और लड़का केवल दोस्त नहीं हो सकते
दो लड़कियाँ केवल पक्की सहेली हो सकती हैं
अधिक पकना रिश्तों का यहाँ भी ठीक नहीं

“ठीक नहीं है” ; यह सीख रखा है उन्होंने भी ।

बरसों बरस छलना स्वयं को
आईनों के बाज़ार में
सेम पोज लेकर देखना
उतना ही जितना घूमता है सबका कैमरा ,
जिन्होंने एक साथ फोटो रखने शुरू किए
प्रोफाइल पर दिखने लगे साथ-साथ
वे थोड़ा-सा खटक रहे
मानवाधिकार वाले अलबम में ।

कानून से लेकर समाज तक
लंबी है डगर पनघट की

जिन्होंने थाम लिए एक जैसे हाथ
साथ रहने के लिए
कितने मकान मालिकों ने लौटाया
कितने अधिक हुए वे असामाजिक
कितनी जगह ले लेंगे वे
कि आ जाएँगे अलग वोटर लिस्ट में?

ढूँढ़ रहे वे सजातीय चार आँखों से
इस विशाल भूमि पर अपना कोना
इतना कि बचा रहे प्रेम बचा रहे समाज
नहीं चाहिए उन्हें अलग पृथ्वी
उड़नबाजी के लिए अलग आकाश
अलग देश या अलग नागरिकता
अलग नहीं हैं वे
बस इतना ही चाहते हैं मनुष्यता से

रत्ती भर बचे इंसानों के बीच
बस रत्ती भर जगह तलाश रहे हैं वे ।