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"तलवार / सुरेश सलिल" के अवतरणों में अंतर

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तो वे अपनी फूलों की क्यारियों की गोड़ाई कर रहे थे
 
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उनके हाथ में एक बड़ा-सा जंग खाया चाकू था
 
उनके हाथ में एक बड़ा-सा जंग खाया चाकू था
जो हल्के-हल्के जमीन की मिट्टी उड़स रहा था
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कामरेड तिवारी के हाथ में वह जंग खाया चाकू देख  
 
कामरेड तिवारी के हाथ में वह जंग खाया चाकू देख  
 
मुझे उस तलवार की याद हो आई जो बचपन में मेरे घर हुआ करती थी  
 
मुझे उस तलवार की याद हो आई जो बचपन में मेरे घर हुआ करती थी  
  
मेरे बचपन की वह तवारीखी तलवार  
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एक देसी रियासत की लंबी मुलाजिमत से रिटायर हुए  
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एक रिश्तेदार की मार्फत हमारे घर पहुँची थी
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एक रिश्तेदार की मार्फ़त हमारे घर पहुँची थी
उसकी म्यान लाल मखमल से मढ़ी थी
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उसकी म्यान लाल मख़मल से मढ़ी थी
और उसकी गैर रिवायती मूठ पर सुनहरे बेल-बूटे छपे थे
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और उसकी ग़ैर रिवायती मूठ पर सुनहरे बेल-बूटे छपे थे
  
 
वह नामुराद तलवार कभी कोठरी के अँधेरे में
 
वह नामुराद तलवार कभी कोठरी के अँधेरे में
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फिर उस तलवार की जिंदगी में एक तब्दीली आई
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गाँव के कुछेक उत्साहीजनों की पहलकदमी पर
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दशहरे के दौरान गाँव में रामलीला का सिलसिला शुरू हुआ
 
दशहरे के दौरान गाँव में रामलीला का सिलसिला शुरू हुआ
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रावण का रोल करने वाले के हाथों में वह लहराने लगी,
 
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रावण के हाथों में तलवार लहराती
 
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रामलीला के बाद आए दिन तलवार घर की दहलीज लाँघने लगी
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तो मैंने तलवार चलाई
 
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हम राम-रावण का खेल खेलते
 
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तो हमारे छोटे-छोटे हाथों में वह नाचता रहता
 
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21:16, 19 जून 2024 के समय का अवतरण

कल मैं अपने पड़ोसी कामरेड तिवारी के घर गया
तो वे अपनी फूलों की क्यारियों की गोड़ाई कर रहे थे
उनके हाथ में एक बड़ा-सा जंग खाया चाकू था
जो हल्के-हल्के ज़मीन की मिट्टी उड़स रहा था

कामरेड तिवारी के हाथ में वह जंग खाया चाकू देख
मुझे उस तलवार की याद हो आई जो बचपन में मेरे घर हुआ करती थी

मेरे बचपन की वह तवारी्ख़ी तलवार
एक देसी रियासत की लम्बी मुलाजिमत से रिटायर हुए
एक रिश्तेदार की मार्फ़त हमारे घर पहुँची थी
उसकी म्यान लाल मख़मल से मढ़ी थी
और उसकी ग़ैर रिवायती मूठ पर सुनहरे बेल-बूटे छपे थे

वह नामुराद तलवार कभी कोठरी के अँधेरे में
दीवार के सहारे खड़ी कर दी जाती
कभी एक सीध में गड़ी दो खूँटियों पर टाँग दी जाती...

फिर उस तलवार की ज़िन्दगी में एक तब्दीली आई
गाँव के कुछेक उत्साहीजनों की पहलक़दमी पर
दशहरे के दौरान गाँव में रामलीला का सिलसिला शुरू हुआ
तो हफ़्ते-दस दिन को ही सही
रावण का रोल करने वाले के हाथों में वह लहराने लगी,
रावण के हाथों में तलवार लहराती
तो सारा माहौल सनसना उठता
मानो तलवार का हाथ में होना ही
पृथ्वीराज चौहान या अमरसिंह राठौर होने के लिए काफ़ी है

रामलीला के बाद आए दिन तलवार घर की दहलीज़ लाँघने लगी
जब भी गाँव का कोई नौजवान
गौंतरी के लिए अपनी या अपने भाई की ससुराल जाता
तो दो-चार दिन के लिए तलवार माँग कर ले जाता,
किसी लड़के के देखुआ आते
तो उसी तलवार के साथ उनके आगे उसे पेश किया जाता

इसी दरमियान पड़ोस के गाँव से
दूर के रिश्ते के मेरे एक मामा तलवार माँगने आए
उन्हें अपनी भाभी की विदा कराने जाना था,
रिश्तेदारी की बात थी
देनी पड़ी उनको भी तलवार आख़िरकार

लेकिन इस बार दो-चार दिन क्या दो-चार हफ़्तों तक
वापस नहीं लौटी तलवार
इन्तज़ार करते थक गए जब घर के लोग
(इस बीच कई और घरों से माँगा आ चुका था
तो आख़िरकार ख़बर भिजवाई गई)

अगले दिन मामा जब आए तो उनके हाथ में थे तलवार के दो टुकड़े
बताया — रास्ते में उचक्के मिले, छीनने लगे साइकिल
तो मैंने तलवार चलाई
उचक्कों का तो कुछ नहीं बिगड़ा, पर तलवार
साइकिले के फ़्रेम से जा टकराई
मूठ वाला आधा हिस्सा रहा मेरे हाथ में और....
जब तक सँभलूँ-सँभलूँ चोर तब तक साइकिल भी ले उड़े

इस तरह उस तवारीख़ी तलवार की एक भूमिका ख़त्म हुई...
नीचे का आधा हिस्सा बढ़ई ने लकड़ी का हत्था लगाकर
चाकू में तब्दील कर दिया
उससे साग-सब्ज़ी काटने का काम लिया जाने लगा
और मूठ वाला ऊपर का हिस्सा
बच्चों के खेल-खिलवाड़ की चीज़ बन गया —
हम राम-रावण का खेल खेलते
तो हमारे छोटे-छोटे हाथों में वह नाचता रहता
गेंदे या तुलसी के पौधे रोपने के लिए
जब छोटी क्यारियाँ बनाई जातीं
तो वह खुरपी का रूप ले लेता

कल कामरेड तिवारी को
जंग खाए चाकू से फूलों की क्यारियों की गोड़ाई करते देख
बचपन की उस तलवार की याद
शायद इसीलिए आई होगी...

(1998)