"माँ की मीठी आवाज़ (कविता) / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर
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घर लौट रहा था दफ़्तर से मैं बेहद थका हुआ | घर लौट रहा था दफ़्तर से मैं बेहद थका हुआ | ||
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मन भरा हुआ था मेरा कुछ, ज्यों फल पका हुआ | मन भरा हुआ था मेरा कुछ, ज्यों फल पका हुआ | ||
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देख रहा था शाम की दुनिया, ख़ूबसूरत हरी-भरी | देख रहा था शाम की दुनिया, ख़ूबसूरत हरी-भरी | ||
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लोगों के चेहरों पर भी सुन्दर संध्या थी उतरी | लोगों के चेहरों पर भी सुन्दर संध्या थी उतरी | ||
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तभी लगा यह जैसे कहीं कोई बजा हो सुन्दर साज | तभी लगा यह जैसे कहीं कोई बजा हो सुन्दर साज | ||
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याद आ गई मुझे अपनी माँ की मीठी आवाज़ | याद आ गई मुझे अपनी माँ की मीठी आवाज़ | ||
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घूम रहा था मैं अपनी नन्ही बिटिया के साथ | घूम रहा था मैं अपनी नन्ही बिटिया के साथ | ||
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थामे हुए हाथ में अपने उसका छोटा-सा हाथ | थामे हुए हाथ में अपने उसका छोटा-सा हाथ | ||
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तभी अचानक वह हँसी ज़ोर से, ज्यों गूँजा संगीत | तभी अचानक वह हँसी ज़ोर से, ज्यों गूँजा संगीत | ||
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लगे स्मृति से मेरी भी झरे है कोई जलगीत | लगे स्मृति से मेरी भी झरे है कोई जलगीत | ||
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वही धुन थी, वही स्वर था उसका, वही था अन्दाज़ | वही धुन थी, वही स्वर था उसका, वही था अन्दाज़ | ||
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कानों में बज रही थी मेरे माँ की मीठी आवाज़ | कानों में बज रही थी मेरे माँ की मीठी आवाज़ | ||
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कितने वर्षों से साथ लिए हूँ मन के भीतर अपने | कितने वर्षों से साथ लिए हूँ मन के भीतर अपने | ||
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दिन गुज़रे माँ के संग जो थोड़े, वे अब लगते सपने | दिन गुज़रे माँ के संग जो थोड़े, वे अब लगते सपने | ||
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थका हुआ माँ का चेहरा है, जारी है दूसरी लड़ाई | थका हुआ माँ का चेहरा है, जारी है दूसरी लड़ाई | ||
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चिन्ता करती माँ कभी मेरी, कभी पिता, कभी भाई | चिन्ता करती माँ कभी मेरी, कभी पिता, कभी भाई | ||
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तब जर्मन हमले की गिरी थी, हम पर भारी गाज | तब जर्मन हमले की गिरी थी, हम पर भारी गाज | ||
− | + | याद मुझे है आज भी, यारो, माँ की मीठी आवाज़ | |
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आज सुबह-सवेरे बैठा था मैं अपने घर के छज्जे | आज सुबह-सवेरे बैठा था मैं अपने घर के छज्जे | ||
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जोड़ रहा था धीरे-धीरे कविता के कुछ हिज्जे | जोड़ रहा था धीरे-धीरे कविता के कुछ हिज्जे | ||
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चहक रही थीं चिड़िया चीं-चीं, मचा रही थीं शोर | चहक रही थीं चिड़िया चीं-चीं, मचा रही थीं शोर | ||
− | + | उसी समय गिरजे के घण्टों ने ली मद्धिम हिलोर | |
− | उसी समय गिरजे के | + | |
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लगी तैरने मन के भीतर, भैया, फिर से आज | लगी तैरने मन के भीतर, भैया, फिर से आज | ||
− | + | वही सुधीरा और सुरीली माँ की मीठी आवाज़ | |
− | वही सुधीरा और सुरीली माँ की मीठी | + | </poem> |
07:50, 27 जून 2024 के समय का अवतरण
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घर लौट रहा था दफ़्तर से मैं बेहद थका हुआ
मन भरा हुआ था मेरा कुछ, ज्यों फल पका हुआ
देख रहा था शाम की दुनिया, ख़ूबसूरत हरी-भरी
लोगों के चेहरों पर भी सुन्दर संध्या थी उतरी
तभी लगा यह जैसे कहीं कोई बजा हो सुन्दर साज
याद आ गई मुझे अपनी माँ की मीठी आवाज़
घूम रहा था मैं अपनी नन्ही बिटिया के साथ
थामे हुए हाथ में अपने उसका छोटा-सा हाथ
तभी अचानक वह हँसी ज़ोर से, ज्यों गूँजा संगीत
लगे स्मृति से मेरी भी झरे है कोई जलगीत
वही धुन थी, वही स्वर था उसका, वही था अन्दाज़
कानों में बज रही थी मेरे माँ की मीठी आवाज़
कितने वर्षों से साथ लिए हूँ मन के भीतर अपने
दिन गुज़रे माँ के संग जो थोड़े, वे अब लगते सपने
थका हुआ माँ का चेहरा है, जारी है दूसरी लड़ाई
चिन्ता करती माँ कभी मेरी, कभी पिता, कभी भाई
तब जर्मन हमले की गिरी थी, हम पर भारी गाज
याद मुझे है आज भी, यारो, माँ की मीठी आवाज़
आज सुबह-सवेरे बैठा था मैं अपने घर के छज्जे
जोड़ रहा था धीरे-धीरे कविता के कुछ हिज्जे
चहक रही थीं चिड़िया चीं-चीं, मचा रही थीं शोर
उसी समय गिरजे के घण्टों ने ली मद्धिम हिलोर
लगी तैरने मन के भीतर, भैया, फिर से आज
वही सुधीरा और सुरीली माँ की मीठी आवाज़