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फूलों की क्यारी के बीच, अब करता नहीं कोई आराम, | फूलों की क्यारी के बीच, अब करता नहीं कोई आराम, | ||
हाँ, कभी-कभी दिख जाते हैं, इन खेतों के बीच हलवाहे | हाँ, कभी-कभी दिख जाते हैं, इन खेतों के बीच हलवाहे | ||
− | श्रम | + | श्रम करके अब उतार रहे जो, दिन- दोपहर अपनी थकान । |
कुछ निडर वनपशु दिख जाते हैं, भाग रहे हैं इधर-उधर, | कुछ निडर वनपशु दिख जाते हैं, भाग रहे हैं इधर-उधर, | ||
छिपने को बसेरा खोज रहे, सिहरे मौसम का देख कहर, | छिपने को बसेरा खोज रहे, सिहरे मौसम का देख कहर, | ||
− | चाँद भी धुँधला गया है, | + | चाँद भी धुँधला हो गया है, झर - झर उतर रहा कोहरा, |
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Лишь в бору поникши ели | Лишь в бору поникши ели | ||
Зелень мрачную хранят. | Зелень мрачную хранят. | ||
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Под нависшею скалою | Под нависшею скалою | ||
Уж не любит, меж цветов, | Уж не любит, меж цветов, | ||
Пахарь отдыхать порою | Пахарь отдыхать порою | ||
От полуденных трудов. | От полуденных трудов. | ||
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Зверь, отважный, поневоле | Зверь, отважный, поневоле | ||
Скрыться где-нибудь спешит. | Скрыться где-нибудь спешит. |
05:49, 12 जुलाई 2024 के समय का अवतरण
पीत केसरिया हो चला है रंग पत्तियों का पेड़ों पर,
तेज हवा में झूम रहीं वो, भँवर सा लगा रहीं चक्कर,
हालाँकि वन में सजे खड़े हैं, वैसे के वैसे फ़र के वृक्ष
हैरान हुए ऋतु की इस धज से उदास खड़े वे हरिहर ।
चट्टान की छाया में बैठा दिखता नहीं अब कोई किसान,
फूलों की क्यारी के बीच, अब करता नहीं कोई आराम,
हाँ, कभी-कभी दिख जाते हैं, इन खेतों के बीच हलवाहे
श्रम करके अब उतार रहे जो, दिन- दोपहर अपनी थकान ।
कुछ निडर वनपशु दिख जाते हैं, भाग रहे हैं इधर-उधर,
छिपने को बसेरा खोज रहे, सिहरे मौसम का देख कहर,
चाँद भी धुँधला हो गया है, झर - झर उतर रहा कोहरा,
रात चाँदनी सी चमके है, पर आभा उसकी है पीली-धूसर ।
1828
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
और अब यह कविता मूल रूसी भाषा में पढ़ें
Михаил Лермонтов
Осень
Листья в поле пожелтели,
И кружатся и летят;
Лишь в бору поникши ели
Зелень мрачную хранят.
Под нависшею скалою
Уж не любит, меж цветов,
Пахарь отдыхать порою
От полуденных трудов.
Зверь, отважный, поневоле
Скрыться где-нибудь спешит.
Ночью месяц тускл, и поле
Сквозь туман лишь серебрит.
1828