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"मात हराई पानी भो / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर
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20:43, 17 जुलाई 2024 के समय का अवतरण
हिउँजस्तो जीन्दगी यो, छट्पकटाई पानी भो
छातीको पीडा मध्यरात आँखामा आई पानी भो
डुल्दै थिए बादलझैँ नजर मुहार-मुहारमा
मेरो इच्छा एउटा मान्छे मनपराई पानी भो
पग्लिनु, बग्नु, पोखिनु त रीत रहेछ पिरतीको
हेर हिमाल घामसँग प्रीत लगाई पानी भो
कस्तो भनी छाम्दाछाम्दै तातिएर पोखिई भाग्यो
असिना झैं बैँस मेरो मलाई छक्याई पानी भो
प्रेम भन्या रक्सीजस्तो मात रहेछ जीवनको
माया झिकेपछि जीवन मात हराई पानी भो
चितामा जल्न थालेपछि पो चिनियो मान्छेहरू
आफ्ना भन्नेले आगै थपे बरू पराई पानी भो
बगिरहेँ पानीजस्तै बाँचुन्जेल नि सधैँभरि
खरानी मेरो नदी मै बगाए, मेरो मराइ पानी भो
बादलझैँ उड्न पाए आकाश छुन सकिने थ्यो
तर सुमन ! सागर सधैँ, उड्न नपाई पानी भो