भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ओ! प्रेमचंद के हल्कू / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:24, 15 अगस्त 2024 के समय का अवतरण

ओ! प्रेमचंद के हल्कू कह
क्या कंबल हेतु जुटे पैसे

वह बँटेदार रामू जो था
उसका उपजा फिर नहीं हुआ
अफ़सर, मुखिया, क़र्ज़े में ही
राहत का पैसा सभी बँटा

वह आंदोलन कर लौट गया
पर मिला नहीं कुछ दिल्ली से

राधा चूल्हा-चौका करती
दुखिया दो बेटी छोड़ गया
नीलाम हुआ जब घर उसका
वह दुनिया से मुख मोड़ गया

राधा-सी कितनी रोती हैं
वह भूख मिटाएँगीं कैसे

हरिया जैसे कितनों ने ही
अपने खेतों को बेच दिया
होगी न किसानी उससे अब
बेमन से है स्वीकार किया

मज़दूर बने मजबूर सभी
दिन काट रहे जैसे-तैसे