भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिनुआ / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:43, 15 अगस्त 2024 के समय का अवतरण
दिनुआ दीनानाथ हो गया
कोरे नारों से
गले लगा,
सबको समझाया
अपना हूँ सबका
बहुत दुखों को
झेल चुका है
अपना यह तबका
लदा हुआ था
गलियों में कल
मोटे हारों से
टूटी चप्पल
पहन गली में
वोट माँगता था
बाबू, भैया,
मैया कह जो
सगा मानता था
आज वही है
हाथ हिलाता
मोटरकारों से
निष्ठा अब भी
जुड़ी हुई है
दिनुआ अपना है
चाहे धूमिल हुआ
सभी के
मन का सपना है
ऐसे में क्या
खेल नहीं हो
निज अधिकारों से ?